जरा गौर से सुनो लोगो, विकास चाहिए तो राजनीति समझो…

(वरिष्ठ पत्रकार गुणानंद जखमोला की कलम से)

– पेट्रोल-डीजल के मुद्दे पर क्यों निकली सड़कों पर कांग्रेस?
– बेरोजगारी, प्रवासी, स्वास्थ्य और विकास क्यों नहीं दलों के एजेंडे में?

दो दिन पहले मरणासन्न प्रदेश कांग्रेस अपने चकराता के पप्पू को लेकर देहरादून की सड़कों पर उतर आयी। बहाना था पेट्रोल-डीजल के बढ़े दाम। कोरोना संकट और सोशल डिस्टेंसिंग की परवाह किये बिना कांग्रेसी सड़क पर आ गये। पुलिस ने आपदा एक्ट के तहत केस दर्ज कर लिया। सोचो क्या वजह थी कि प्रदेश में दम तोड़ रही कांग्रेस के नेताओं ने ऐसा क्यों किया?

अब आप प्रवासियों के घर वापसी के मुद्दों पर मुख्यमंत्री आवास पहुंचे कांग्रेस के छह नेताओं की घटना को याद कीजिए। यही प्रदेश अध्यक्ष, उपाध्यक्ष और पूर्व विधायक अपनी घोर बेइज्जती करवा कर वहां से वापस लौट आए थे। तब न धरना किया न विरोध किया। कह दिया सीएम ने चार ही लोगों को मिलने की इजाजत दी।

अब आप इन दोनों घटनाओं को जोड़ो। सीएम आवास वाली घटना लाॅकडाउन में फंसे तीन लाख से भी अधिक प्रवासी लोगों की थी तो कांग्रेसी बेइज्जती होने के बावजूद चुप्पी साध घर बैठ गये। लेकिन पेट्रोल-डीजल के दाम जो कि देशव्यापी मुद्दा था तो उसे लेकर सड़क पर उतर आए और स्वयं पर केस दर्ज करवा लिया। क्यों? सीधी सी बात क्योंकि चकराता के इस पप्पू को दिल्ली के अपने आकाओ तक फोटो, वीडियो और संदेश देना था कि मेरे आका, देखा आपके लिए मैंने केस दर्ज करवा लिया। आकाओं के पास संदेश पहुंच गया तो अब एक भी कांग्रेसी दर्ज मुकद्मों के विेरोध में न तो धरना दे रहा, न ही प्रदर्शन करने बाहर निकल रहा। केस का क्या है साल में एक तारीख पड़ती है। घूमना भी हो जाएगा। केस भी निपट जाएगा। लेकिन जनता का क्या?

यही राजनीति है। राष्ट्रीय दल पिछले 20 साल से यही कर रहे हैं। इनके एजेंडे में जनता और विकास नहीं होते। इनके एजेंडे में आका और सत्ता होती हैं। कांग्रेस पिछले तीन साल से राज्य के एक भी मुद्दे पर प्रदेश व्यापी अभियान नहीं चला सकी। कमजोर विपक्ष और दिमागी अंधापन के शिकार कांग्रेसी और भाजपाई जानते हैं कि सत्ता का क्या है, बारी-बारी आती है। पांच साल तुम शासन करो, पांच साल हम करें। क्योंकि जनता तो मूर्ख है और उसकी याददाश्त कमजोर। उसे यह याद नहीं रहता है कि पांच साल से पहले वाले पांच साल में क्या हुआ? उसे तो इतना भी याद नहीं रहता कि कौन नेता कब और किस पार्टी में था।

सीधी बात है कि जब तक उत्तराखंड के भाग्य का फैसला दिल्ली से होता रहेगा। हमें नेताओं के रूप में नमूने, जोकर या नकलची बंदर ही मिलेंगे। क्योंकि आका कभी नहीं चाहेंगे कि कोई समझदार या विजनरी प्रदेश का नेतृत्व करें या प्रदेश का विकास हो। क्योंकि यदि मुद्दे समाप्त हो जाएंगे तो फिर वोट कैसे हासिल करेंगे?

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