उत्तर प्रदेश में लव जिहाद के खिलाफ कानून लागू हो चुका है और इसे लेकर राज्य सरकार का रवैया भी सख्त है, लेकिन इस बीच इलाहाबाद हाईकोर्ट (Allahabad High Court) ने एक बार अंतरजातीय विवाह करने वाले दंपति (Interfaith Couple) को बरी कर दिया है. हाईकोर्ट ने यह फैसला इस आधार पर दिया है कि लड़की की उम्र 18 साल से ऊपर है और उसे अपनी पसंद के व्यक्ति के साथ शादी करने और अपनी शर्तों पर जीवन जीने का अधिकार है.
23 वर्षीय मुस्लिम युवक और हिंदू धर्म से इस्लाम को अपनाने वाली 22 वर्षीय महिला की रिट याचिका पर सुनवाई करते हुए जस्टिस सरल श्रीवास्तव ने कहा, “अदालत बार-बार कह चुकी है कि अगर दो व्यक्ति नाबालिग नहीं हैं और उन्होंने अपनी इच्छा से साथ रहने का फैसला किया है तो उनके शांतिपूर्ण जीवन में किसी को भी हस्तक्षेप करने का अधिकार नहीं है.” कोर्ट ने दोनों को पुलिस सुरक्षा देने का आदेश दिया है.
दंपति ने कोर्ट से की यह मांग
दरअसल, लड़का और लड़की ने कोर्ट को अपने डॉक्युमेंट्स दिखाते हुए कहा कि उनका जन्म क्रमशः 1997 और 1998 में हुआ था. यानी अब वे नाबालिग नहीं रहे और अपने जीवन का फैसला कर सकते हैं. हाईकोर्ट में दायर की गईं इन याचिकाओं में महिला ने कहा कि उसने अपनी इच्छा से इस्लाम धर्म को अपनाने का फैसला किया है और अपनी मर्जी के व्यक्ति के साथ शादी की है. दंपति ने कोर्ट से मांग की है कि उन्हें उनके परिवारों से सुरक्षा दिलाई जाए और उसके जीवन में कोई हस्तक्षेप ना किया जाए.
UP सरकार के कानून के खिलाफ याचिकाएं
मालूम हो कि उत्तर प्रदेश के जबरन धर्म परिवर्तन के खिलाफ कानून (Law against conversion) में अलग-अलग कैटेगरी के तहत 10 साल तक की कैद और अधिकतम 50,000 रुपये के जुर्माने का प्रावधान किया गया है. यूपी सरकार के कानून को लेकर इलाहाबाद हाईकोर्ट में जनहित याचिकाएं दायर की गई हैं. इन याचिकाओं में धर्मांतरण विरोधी कानून को संविधान के खिलाफ और गैरजरूरी बताते हुए चुनौती दी गई है.
याचिकाकर्ता का कहना है कि यह कानून व्यक्ति की निजी पसंद और अपनी शर्तों पर किसी व्यक्ति के साथ रहने और उसे अपनाने के मूल अधिकारों के खिलाफ है. यह लोगों की आजादी के अधिकार का हनन करता है, इसलिए इसे रद्द किया जाए, क्योंकि इस कानून का दुरुपयोग किया जा सकता है.
राज्य सरकार का ये है तर्क
वहीं, राज्य सरकार की तरफ से हलफनामा दाखिल कर कहा गया है कि शादी के लिए धर्म परिवर्तन से कानून व्यवस्था की स्थिति खराब न हो, इसके लिए कानून लाया गया है, जो पूरी तरह से संवैधानिक है. इससे किसी के मूल अधिकारों का हनन नहीं होता, बल्कि नागरिक अधिकारों की रक्षा की जाती है. इस कानून के जरिए केवल छल-कपट के जरिये धर्मांतरण पर रोक लगाने की व्यवस्था की गई है.