भारत के मुकाबले हर मोर्च पर फेल हुई चीन की वैक्सीन

भारत के मिशन वैक्सीन मैत्री से चीन बुरी तरह बौखला गया है. यही वजह है कि जिनपिंग का भोंपू मीडिया यानी ग्लोबल टाइम्स ने मेड इन इंडिया वैक्सीन को बदनाम करने की साजिश रचना शुरू कर दिया है. चीन की प्रोपेगेंडा फैक्ट्री पूरी तरह एक्टिव हो गई है. भारतीय वैक्सीन के असर से लेकर उत्पादन क्षमता तक को लेकर मनगढ़ंत कहानियां गढ़ी जा रही हैं. इसकी वजह भारत की वैक्सीन पर दुनिया का विश्वास और चीन की वैक्सीन पर अविश्वास. करीब आधी दुनिया मेड इन इंडिया वैक्सीन की डिमांड कर चुकी है और वसुधैव कुटुंबकम की विचारधारा वाला भारत भी कोरोना से जंग में सबका साथ दे रहा है. एक ओर खुद वैक्सीनेशन प्रोग्राम चला रहा है, तो दूसरी ओर पड़ोसी मित्र देशों समेत बाकी मुल्कों को भी कोरोना से जंग में मजबूत कर रहा है.

भारत अब तक बांग्लादेश, भूटान, नेपाल, म्यांमार, मालदीव, मॉरीशस, सेशल्स इन सात पड़ोसी देशों को वैक्सीन की 50 लाख डोज गिफ्ट कर चुका है. जबकि भारत के प्रयासों के उलट चीन ने बहुत कम और उन देशों को वैक्सीन देने का ऑफर दिया है जहां वो राजनीतिक और आर्थिक रूप से अपने पैर पसारना और प्रभाव जमाना चाहता है और उनमें से भी कई देशों को भारत से ही ज्यादा उम्मीदें हैं. नेपाल मे ड्रग रेगुलेटर ने अभी तक चीनी वैक्सीन को मंजूरी नहीं दी है.

दरअसल, चीन की कंपनी सिनोफार्म बांग्लादेश को अपनी सिनोवैक वैक्सीन देने पर राजी हुई थी. लेकिन शर्त यह थी कि बांग्लादेश को क्लिनिकल ट्रायल में होने वाले खर्च में हिस्सा देना पड़ेगा. ये शर्त बांग्लादेश ने मानने से इनकार कर दिया और सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया की बनाई कोविशील्ड की 3 करोड़ डोज के लिए भारत से समझौता किया, जिसमें से 3 लाख डोज की खेप बांग्लादेश पहुंच भी गई है. वैक्सीन की कॉमर्शियल सप्लाई की लिस्ट में कई और देश भी हैं.

चीन की वैक्सीन से उठा भरोसा

इनमें सऊदी अरब, साउथ अफ्रीका, मोरक्को और ब्राजील का भी नाम है. ब्राजील वो मुल्क है, जहां चीन की वैक्सीन ने सबसे पहले दस्तक दी थी. ब्राजील में चीन की सिनोवेक कंपनी की वैक्सीन कोरोनावैक के ट्रायल भी हुए हैं. लेकिन उसके नतीजे और बाकी देशों में हुए ट्रायल के नतीजों ने दुनिया का चीन की वैक्सीन पर से भरोसा उठा दिया है.

ब्राजील में चीन की कोरोनावैक 50 फीसदी तो तुर्की में 91.25 फीसदी असरदार पाई गई. जबकि इंडोनेशिया में ये आंकड़ा 65.3 फीसदी रहा. ऐसे में सवाल उठ रहा है कि आखिर चीन की कोरोना वैक्सीन के असर में इतना अंतर कैसे. इसके अलावा चीन की एक और सरकारी कंपनी सिनोफर्म की वैक्सीन में 73 तरह के साइड इफेक्ट्स होने का दावा खुद चीन के एक बड़े डॉक्टर कर चुके हैं. यही वजह है कि चीन को अपनी कोविड-19 वैक्सीन के लिए खरीदार तलाशने में नाको चने चबाने पड़ रहे हैं.

चीन को नहीं पच रही भारत की तरक्की

चीन अपनी वैक्सीन की कमियों को नहीं देख रहा है. भारत एक ओर अपनी जिम्मेदारियों को और संस्कारों को निभाते हुए तेजी से अपने मित्र देशों को वैक्सीन सप्लाई कर रहा है, लेकिन चीन को ये पच नहीं रहा है. क्योंकि भारत सुख-दुख की हर घड़ी में मित्र पड़ोसी देशों के साथ रहा है, जबकि चीन की विस्तारवादी नजर हमेशा पड़ोसी देशों पर कब्जे की रही है. भारत सिर्फ अपनी चिंता करने वाला देश नहीं है. जबकि चीन हर चीज में पहले अपना फायदा देखता है. उसके लिए अपना मुनाफा जरूरी है. दोस्ती से ज्यादा पैसों से प्यार है.

चीन के लिए दुनिया सिर्फ एक बाजार है और इसी भावना के साथ उसने वैक्सीन बनाई थी. लेकिन भारत का चरित्र ऐसा नहीं है. भारत पूरी दुनिया को एक परिवार मानता है. वसुधैव कुटुंबकम की नीति पर चलता है और इस वक्त भी भारत, वैक्सीन देकर उसी परिवार का साथ निभा रहा है ना कि उपकार कर रहा है. लेकिन आज हमने आपको ये रिपोर्ट इसीलिए दिखाई क्योंकि चीन अब खुलकर भारतीय वैक्सीन के खिलाफ दुष्प्रचार पर उतारू हो गया है. इसलिए हमें ये बताना पड़ा कि भारत किन देशों को वैक्सीन देकर उन्हे मजबूत बना रहा है. ताकि कोरोना से एक-दो मुल्क नहीं, बल्कि पूरी दुनिया जल्द से जल्द जंग जीत सके.

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