महिलाओं के अंडर गारमेंट्स चुराने वाला रिसर्च स्कॉलर हुआ गिरफ़्तार

नैनीताल. नैनीताल में एक रिसर्च स्कॉलर का अजीब-ओ-गरीब कारनामा सामने आया है. ये ऐसा कारनामा था जिससे महिलाएं रोजाना अजीब सी परेशानी में फंस जाती थीं. उनका महीने का बजट भी गड़बड़ा रहा था. दरअसल ये रिसर्च स्कॉलर महिलाओं द्वारा धूप में सुखाने के लिए डाले गए उनके अंडर गारमेंट्स चोरी कर लेता था. महिलाएं खासी परेशान थीं क्योंकि उन्हें आए दिन नए अंडर गारमेंट्स खरीदने पड़ते थे.

दरअसल, फांसी गधेरे में सरकारी स्टाफ क्वाटर बने हैं. यहां कर्मचारी अपने परिवारों के साथ रहते हैं. यहीं ये कुमाऊं यूनिवर्सिटी के डीएसबी कैंपस और अन्य  डिपार्टमेंट्स के लिए रास्ता है. आम लोगों के साथ ही स्टूडेंट गुजरते रहते हैं. स्टाफ क्वाटर में रहने वाली महिलाएं कई महीनों से परेशान थीं क्योंकि जो भी अंडर गारमेंट्स को धोने के बाद सुखाने के लिए डालती थी, वो गायब हो जाते थे. यह बात महिलाओं के बीच चर्चा का विषय बन गई.

ऐसे पकड़ में आया रिसर्च स्कॉलर

महिलाओं ने तल्लीताल पुलिस थाने में इसकी शिकायत की. पुलिस ने महिलाओं की शिकायत को गंभीरता से लिया. एसओ तल्लीताल विजय मेहता अपनी टीम के साथ स्टाफ क्वार्टर में नजर रखे हुए थे, तभी एक स्मार्ट का लड़का वहां पहुंचा. उसने पहले इधर-उधर देखा और फिर किसी को करीब न देख तार में लटके अंडर गारमेंट्स बैग में रखने लगा. पुलिस ने उसे रंगे हाथों पकड़ लिया और थाने ले आई.
पूछताछ में पता चला कि ये लड़का कुमाऊं यूनिवर्सिटी के डिमार्टमेंट से रिसर्च यानी पीएचडी कर रहा है. पुलिस ने जब उससे महिलाओं के अंडरगारमेंट्स चुराने की बात पूछी तो उसने सच स्वीकार किया. उसने बताया कि उसे महिलाओं के अंडर गारमेंट्स छूना और उनकी खूशबू अच्छी लगती थी. इसलिए वो मौका देखते ही उन्हें चुरा लेता था. पुलिस ने इस रिसर्च स्कॉलर की काउंसलिंग कर धारा 151 में चालान काटा और भविष्य में ऐसा न करने की चेतावनी देकर छोड़ दिया.

मानसिक बीमारी ये है आदत

डॉ. युवराज पंत कहते हैं कि ये एक प्रकार का मानसिक रोग होता है. मनोविज्ञान की भाषा में इसे ओसीडी यानी ऑब्सेसिव कंपल्सिव डिसऑर्डर कहते हैं. इसका मतलब है कि इस शख्स को ऐसा काम करने की आदत हो जाती है जो उसे अच्छा लगता है. ऐसे व्यवहार करने करने पर उसे बैचेनी होती है, इसलिए वो बार-बार करते हैं और जैसे ही ये ऐसा काम कर देता है उसकी बेचैनी खत्म हो जाती है. डॉ. युवराज पंत के मुताबिक इस बीमारी का इलाज संभव है जिसके लिए फार्माकॉलोजी और मनोवैज्ञानिक काउंसलिंग की मदद ली जाती है.

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