नैनीताल : जंगली जानवरों के आतंक से परेशान पर्वतीय क्षेत्र के किसान मायूस व परेशान है। पर अब किसान बंजर भूमि पर बांस उगा आय बढ़ाएंगे। इसके लिए बकायदा बांस की विभिन्न प्रजातियों पर गोविंद बल्लभ पंत अनुसंधान केंद्र मझेडा़(बेतालघाट ब्लाक) में शोध किया जा रहा है। शोध के बाद किसानों को तेजी से बढ़ने तथा बेहतर आय वाले बांस उत्पादन के लिए प्रेरित किया जाएगा।
जंगली जानवरों से लगातार खेती चौपट होते जा रही है जिस कारण किसान बेहद परेशान है पर अब किसान बांस उत्पादन कर बेहतर कमाई कर सकेंगे। गोविंद बल्लभ पंत अनुसंधान केंद्र की वैज्ञानिक डॉ. अंजलि अग्रवाल ने बकायदा बेहतर उत्पादन व आय वाले करीब पंद्रह प्रजाति के बांस के पौधों पर शोध शुरु कर दिया है। प्रयोगशाला में बांस की विभिन्न प्रजातियों पर शोध के बाद किसानों को उन्नत व बेहतर उत्पादन को तेजी से बढ़ने तथा बंजर भूमि में होने वाले बांस उत्पादन के लिए बढ़ावा दिया जाएगा। विभागीय अधिकारियों के अनुसार शोध पूरा होने के बाद किसानों को पौधे भी वितरित किए जाएंगे ताकि किसान आसानी से उत्पादन कर सकें।
बांस का बड़ा है व्यवसायिक उपयोग
वर्तमान में बांस का व्यवसायिक इस्तेमाल बढ़ गया है। बैंबू हट, फर्नीचर, पॉलीहाउस आदि तमाम कार्यों में बांस का काफी इस्तेमाल किया जा रहा है। इसी को ध्यान में रख उत्पादन पर जोर दिया गया है। किसान पर्वतीय क्षेत्र में ही बांस का बेहतर उत्पादन करेंगे तो उन्हें बेहतर कीमत मिलेगी। गोविंद बल्लभ पंत अनुसंधान केंद्र ने फरसौली (भीमताल) तथा बेतालघाट में एक हजार बांस के पौधे वितरित भी किए जा चुके हैं।
भूस्खलन रोकने में भी है मददगार
बांस उत्पादन के तमाम फायदे हैं। मोटे व मीठे पत्ते होने से जानवरों के लिए किसानों को चारा भी उपलब्ध हो सकेगा वहीं पर्यावरण के लिए भी बांस बेहतर माना जाता है। इसमें कार्बन अवशोषित करने की काफी क्षमता होती है। काला बांस भूस्खलन को रोकने में भी कारगर है।
प्रदेश में बांस की करीब 130 प्रजाति
विश्व में बांस की करीब 1500 प्रजाति है वही देश में करीब 130 प्रजातियां विकसित है। पंतनगर अनुसंधान केंद्र मझेडा़ में करीब 15 अलग-अलग प्रजातियों का संग्रह है। जिस पर तेजी से शोध किया जा रहा है । बेहतर परिणाम मिलने के बाद किसानों को पौधे वितरित कर उनकी आर्थिकी को मजबूत किया जाएगा। गोविंद बल्लभ पंत अनुसंधान केंद्र मझेडा़ के प्रभारी व वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. अंजली अग्रवाल ने बताया कि भालो, मीठा, लाठी, बुद्धा वैली, पीला, काला, जापानी समेत करीब 15 बांस की प्रजातियों पर शोध किया जा रहा है। बेहतर परिणाम मिलने के बाद किसानों को बांस उत्पादक से जोड़ा जाएगा। बांस उत्पादन बेहतर आय का जरिया बन सकेगा।