मुजफ्फरनगर दंगे में आरोपी BJP नेताओं पर दर्ज मामले हटाने की मांग

योगी सरकार (Yogi Government) ने सितंबर 2013 में हुए मुजफ्फरनगर दंगे से जुड़े मामले में उन BJP नेताओं के खिलाफ दर्ज मामलों को वापस लेने के लिए अर्जी दाखिल की है, जिन पर मुजफ्फरनगर के नगला मंडोर गांव में आयोजित महापंचायत में भड़काऊ भाषण देने का आरोप है. इन आरोपियों में हिंदूवादी नेता साध्वी प्राची के साथ सरधना (मेरठ) से विधायक संगीत सोम, शामली से विधायक सुरेश राणा और मुजफ्फरनगर सदर से विधायक कपिल देव अग्रवाल शामिल हैं.

बीजेपी के इन नेताओं पर आदेशों का उल्लंघन करने, सरकारी काम में बाधा डालने और आगजनी में शामिल होने का भी आरोप है. मुजफ्फरनगर के सरकारी वकील राजीव शर्मा ने बताया कि मामले को वापस लेने के लिए उत्तर प्रदेश सरकार की तरफ से संबंधित कोर्ट में याचिका दाखिल की गई है, जिस पर सुनवाई होनी है.

दरअसल, फरवरी 2018 में BJP सांसद संजीव बाल्यान ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ (Yogi Adityanath) से मुजफ्फरनगर दंगे (Muzaffarnagar Riots) के मामले में हिंदुओं के खिलाफ मामलों को वापस लेने की अपील की थी, जिसके बाद योगी सरकार ने इस मामले सहित 13 बिंदुओं के तहत मुजफ्फरनगर और शामली जिला प्रशासन से डिटेल्स मांगकर मामलों को वापस लेने की प्रक्रिया शुरू कर दी.

क्या था मामला

कवाल गांव में एक मुस्लिम युवक द्वारा जाट समुदाय लड़की के साथ छेड़खानी करने के मामले को लेकर 27 अगस्त 2013 को जाट और मुस्लिम समुदाय के बीच झड़प शुरू हुई थी, जिसके बाद लड़की के दो भाइयों गौरव और सचिन ने उस मुस्लिम युवक की पीट-पीट कर हत्या कर दी थी. इसके जवाब में मुस्लिमों ने हिंसा कर लड़की के उन दोनों भाइयों की जान ले ली.

इस मामले को लेकर दोनों पक्षों ने अपनी अपनी महापंचायत बुलाई. 07 सितंबर को नंगला मंदौड़ में हुई इस महापंचायत में BJP के स्थानीय नेताओं पर यह आरोप लगाया गया कि उन्होंने अपने भाषण द्वारा जाट समुदाय को बदला लेने के लिए उकसाया. महापंचायत से लौट रहे किसानों पर जौली नहर के पास हमला कर दिया गया, जिसके बाद दंगे भड़क उठे.

इस दंगे की आग मुजफ्फरनगर और आसपास के इलाके तक फैल गई. दंगाइयों ने किसानों के ट्रैक्टर और मोटरसाइकिलें फूंक दीं. इस दंगे में 65 लोगों की जान चली गई थी और बड़े पैमाने पर लोग हताहत हुए थे. एक फोटोग्राफर और पत्रकार की भी इस दंगे में मौत हो गई थी और हजारों लोग बेघर हो गए थे. दंगे के दौरान इस इलाके में करीब 20 दिनों के लिए कर्फ्यू लगा दिया गया और शहर को सेना के हवाले कर दिया गया था.

समाजवादी पार्टी की सरकार के दौरान शामली और मुजफ्फरनगर में इस मामले को लेकर कुल 510 आपराधिक मामले दर्ज किए गए और 175 मामलों में आरोप पत्र दायर किए गए. महापंचायत के संबंध में मामला 7 सितंबर, 2013 को शिखा पुलिस स्टेशन के तत्कालीन स्टेशन ऑफिसर चरण सिंह यादव ने दायर किया था.

साध्वी प्राची के साथ बीजेपी के तीनों विधायक और पूर्व सांसद हरेंद्र सिंह मलिक समेत चालीस लोगों पर एक समुदाय के खिलाफ भड़काऊ भाषण देने, आदेशों का उल्लंघन करने, जिला प्रशासन की अनुमति के बिना महापंचायत बुलाने, सरकारी अधिकारियों के काम में बाधा डालने जैसे आरोप लगाए गए. इन सभी के खिलाफ भारतीय दंड संहिता (IPC) की कई धाराओं के तहत मामले दर्ज किए गए थे.

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