(वरिष्ठ पत्रकार चारू तिवारी की कलम से)
सरकार लगातार इस बात को प्रचारित करती रहती है कि पलायन को रोकना उसकी प्राथमिकता है। नीति-नियंता हमेशा कहते रहते हैं कि कृषि, पशुपालन, फलोत्पादन या स्थानीय उपजों को बढावा दिया जा रहा है। एक फैशन सा चल पड़ा है यह बताने का कि राज्य हर्बल और जड़ी-बूटियों के विकास से आत्मनिर्भर बन सकता है। लेकिन वास्तविकता बिल्कुल इसके विपरीत है। सरकार बजाय खेती को ग्रामीण अर्थव्यवस्था के साथ जोड़ने के गांवों की कृषि भूमि को खुर्द-बुर्द करने में लगी है। इसका ताजा उदाहरण अल्मोडा जनपद की गगास घाटी है, जहां सोलर प्लांट लगाने के नाम पर सीधे-सादे ग्रामीणों की जमीनों को हड़पने की साजिश हो रही है।
उल्लेखनीय है कि अल्मोड़ा जनपद के द्वाराहाट विकासखंड की गगास घाटी उपजाऊ खेती के लिये प्रसिद्ध रही है। मनेला, भेट, छाना, च्याली, धनखलगांव, हाट, नौसार, पनेरगांव, सकूनी, भंडरगांव, रावलसेरा, र्इडासेरा, थामण, डोटलगांव, पेटशाल, रवाड़ी, बाड़ी, धमोली, कनलगांव, कामा, नौलाकोट, बगड़गांव, पारकोट, बिन्ता, भतौरा, सुरणा, तैल मैनारी तक गगास नदी के किनारे बसे दर्जनों गांव हैं। इसके अलावा ताड़ीखेत विकासखंड के दुगौड़ा, बाट कोटली, बिष्ट कोटली, गाड़ कोटली, गनार्इ, चमना, गुढोली गांव भी हैं। गगास घाटी अल्मोड़ा जनपद की सबसे विस्तृत पटि्टयों में से एक है। घाटी में कई सेरे खेती के लिए जाने जाते हैं। बासुलीसेरा, दुगौडासेरा, र्इडासेरा, कामासेरा, रावलसेरा, बिन्तासेरा, भतौरासेरा की जमीनें सोना उगलने वाली हैं।
गगास नदी से निकलने वाली छाना नहर रावलसेरा से निकलकर अंतिम छोर मनेला में तमाखानी टाटीक में समाप्त होती है। सरकारी उपेक्षा से अब इस नहर का अस्तित्व खतरे में हैं। पानी की कमी से खेती भी संकट में है। लेकिन पिछले समय जब गगास में एक बहुउद्देश्यीय बांध को स्वीकृति मिली और उसका निर्माण कार्य शुरू होने लगा तो लोगों को लगा कि अब जब इस बांध से सिंचार्इ की व्यवस्था होगी तो हम फिर से अपनी जमीन को उन्नत बना पायेंगे। यहां के जागरूक नागरिकों ने इस महत्वपूर्ण जमीन को खेती से आत्मनिर्भर बनाने के लिये सरकारी योजना से सामूहिक खेती से रिवर्स पलायन का खाका भी तैयार किया था। जब पिछले सालों से सरकार ने पलायन को रोकने और रिवर्स पलायन की बात कही तो ग्रामीणों को लगा कि सरकारी योजनाओं से हम सामूहिक खेती से इस पूरी घाटी को आत्मनिर्भर बना सकते हैं। लेकिन उन्हें तब भारी निराशा हुई जब उनकी इसी जमीन को किसी सोलर प्लांट कंपनी को अधिग्रहित करने की प्रशासन ने संस्तुति दे दी।
क्षेत्रीय जनता अभी अपनी इस परिकल्पना को जमीन पर उतारने की बात कर ही रही थी कि कुछ स्थानीय बिचौलियों के माध्यम से इस जमीन को खुर्द-बुर्द करने की साजिश शुरू हो गर्इ। सरकार जहां एक ओर गांव के लोगों को अपनी खेती से रोजगार देने की बात करती है, वहीं वह ग्रामीणों की जमीनों को लीज पर देने और जमीन को बेचने के रास्ते तैयार कर रही है। इसका सबसे बड़ा उदाहरण छाना-भेट-च्याली और दुगौड़ा की जमीन है, जिसे ग्रामीणों को लालच देकर किसी सोलर प्रोजेक्ट को देने की साजिश शुरू हो गर्इ है। देहरादून स्थित एक कंपनी ‘सन लेयर एनर्जी प्राइवेट लिमिटेड’ को कुछ स्थानीय बिचैलियों के माध्यम से लीज और बिक्री के लिये दिये जाने का मामला सामने आया है। पहले भी तमाखानी टाटीक की जमीन को ग्रामीणों से हड़पने की कोशिश की गई थी। जिसे गांव वालों ने समय से समझ लिया। उन्हें गुमराह कर जो पैसा दिया गया था उसे उन्होंने लौटा दिया और अपनी जमीन देने से मना कर दिया था।
अब नया मामला च्याली टाटीक की जमीन का है। राजस्व उपनिरीक्षक छानागोलू के पत्रांक मैमो/अनुमति खसरा-परीक्षण/2020, दिनांक 2.2.2020 के माध्यम से ग्राम प्रधान च्याली, भेट और छाना के ग्राम प्रधानों को इस आशय का एक पत्र लिखा गया कि उनके गांव की 9.1034 हैक्टेयर भूमि को देहरादून निवासी नीता सिंह को विक्रय किया जाना हैं। इसके लिये जिलाधिकारी अल्मोड़ा के पत्रांक 2318/पांच-01/2019-20, दिनांक 30 जनवरी, 2020 के आदेशानुसार ‘सन लेयर एनर्जी प्रा. लि.’ को विक्रय के लिये खसरा नंबरों की जांच के निर्देश प्राप्त हुये। राजस्व उपनिरीक्षक ने अपने पत्र के माध्यम से बताया कि जिलाधिकारी के इस आदेश के अनुपालन में उन्होंने उक्त खसरों की जांच की है। पत्र में लिखा गया कि सभी ग्राम प्रधान उक्त खसरों पर परीक्षण की तिथि सहित हस्ताक्षर करें।
राजस्व उपनिरीक्षक के इस पत्र के बाद सभी ग्राम प्रधान सकते में आ गये। उनका आरोप है कि राजस्व उपनिरीक्षक ने उक्त भूमि को बंजर दिखाकर उसे इस कंपनी के नाम करने की साजिश की है। उनका आरोप है कि जिस जमीन को अकृषक बताकर कंपनी को दिया जा रहा है उसमें उन्होंने गेहूं बोये हैं। पटवारी ने उसे बंजर दिखा दिया है। उनका आरोप है कि उक्त जमीन के बावत पटवारी ने पहले उन्हें तकनीकी रूप से गुमराह किया। जब उनकी बात समझ में आयी तो उन्होंने इस खसरे के सत्यापन से मना कर दिया। इस आशय का पत्र तीनों ग्राम प्रधानों ने 4 मार्च, 2020 को जिलाधिकारी को सौंपा है। उनकी मांग है कि इस जमीन की जांच की जाये और ग्राम सभा के किसानों की जमीन को खुर्द-बुर्द करने से रोका जाये। इसमें क्षेत्र पंचायत सदस्य नीमा देवी और ग्रामीणों के हस्ताक्षर हैं।
ग्रामीणों का आरोप है कि बिचौलियों के साथ मिलकर पटवारी ने कृषि भूमि को अकृषक भूमि दिखाकर गुमराह किया है। जबकि वे इस जमीन पर खेती कर अपना जीवन यापन करते हैं। ग्रामीणों का कहना है कि वे अपनी जमीन को बचाने के लिये आंदोलन करेंगे। उन्होंने जिला मुख्यालय में प्रर्दशन की चेतावनी दी है। ग्रामीणों का इस बात पर भी रोष है कि अभी जब इस जमीन पर कोर्इ फैसला नहीं हुआ तो वहां हमारी जमीन पर जेसीवी मशीन कैसे चला सकते हैं। बताया जाता है कि उक्त जमीन को जाने के लिये अवैध तरीके से सड़क बनाने की कोशिश भी की गयी। इसके खिलाफ च्याली के ग्राम प्रधान प्रकाश भंडारी ने सीएम पोर्टर पर शिकायत भी दर्ज कराई। उनके शिकायत क्रमांक 57223 के उत्तर में बताया गया कि शिकायत पर कार्यवाही के लिये एसडीएम को कह दिया गया है। जब ग्राम प्रधान प्रकाश भंडारी ने एसडीएम से बात की तो उन्होंने बताया कि कुछ विभागीय अधिकारियों ने मौके का जायजा लेकर उसकी पुष्टि कर दी है।
सवाल यह है कि जब विभागीय टीम आई तो शिकायतकर्ता ग्राम प्रधान को इसकी जानकारी क्यों नहीं दी गयी। ग्राम प्रधान प्रकाश भंडारी का कहना है कि इसके बाद मुख्यमंत्री कार्यालय से फोन आया कि उनकी शिकायत को समाधान हुआ या नहीं, जब उन्होंने ना में जवाब दिया तो उनसे कहा गया कि वे उस शिकायत को फिर पोर्टर में डाल सकते हैं। इसके बाद जब ग्रामीणों ने अपनी जमीनों को नहीं बेचने की बात कही और जिन्हें स्थानीय बिचौलियों के माध्यम से पैसा दिया गया वे उसे लौटाने की बात करने लगे तो उनको धमकियां मिलने लगी। इसके खिलाफ ग्रामीणों ने 27 अप्रैल, 2020 जिलाधिकारी को पत्र लिखकर बताया कि स्थानीय बिचौलियों के माध्यम से अब ग्रामीणों को डरा-धमकाकर उक्त जमीन को सोलर पावर को देने के लिए दबाव बनाया जा रहा है। स्थानीय जनप्रतिनिधियों ने पत्र के क्षेत्र में जमीनों को हड़पने के लिये भय और अराजकता का माहौल बनने पर चिंता व्यक्त की है।
फिलहाल, गगास घाटी के सामने भूमाफिया के घुस आने का खतरा बढ़ गया है। बताया जाता कि पिछले दो-तीन साल से इस क्षेत्र के कुछ राजनीतिक कार्यकर्ताओं ने जमीनों पर बिचौलिये का काम शुरू कर दिया है। वे अपने राजनीतिक वजूद से ग्रामीणों को जमीनों को बेचने के लिये तैयार कर रहे हैं। अभी इस तथाकथित कंपनी जिसे खुले अभी एक साल ही हुआ है उसे विकास का रास्ता बताया जा रहा है। असल सवाल यह है कि सरकार और प्रशासन ने जिस महत्वपूर्ण कृषि योग्य जमीन को विकसित करना चाहिये उसमें वह तथाकथित विकास के नाम पर खुर्द-बुर्द करने का रास्ता तैयार कर रही है। प्रशासन को चाहिये था कि वह अपनी कृषि योजनाओं को ग्रामीणों को बताकर उन्हें कृषि से आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ाती, लेकिन इसके उलट शासन और प्रशासन के स्तर पर उन्हें कुछ और बताकर उनकी जमीनों को दूसरों को सौंपने का इंतजाम किया जा रहा है। यह खतरा इसलिये भी बढ़ गया है कि पिछले दिनों सरकार ने जिस तरह पूरे राज्य में कृषि योग्य जमीन को बेचने और लीज पर देने के जो कानून बनाये हैं उसके खिलाफ जनता में रोष है।
गगास घाटी के साथ यह खतरा इसलिये भी है कि गगास के पार का पूरा क्षेत्र जिसमें चौकुनी, मौना, मवाण, डडगलिया, मजखाली, रियूनी, कठपुडि़या, द्वारसों, डीडा से लेकर आगे की पूरी जमीनें ग्रामीणों के हाथ से चली गर्इ हैं। जिस तरीके से ये जमीनें बिकी हैं अब वहां एक इंच जमीन नहीं बची। यही वजह है कि अब भू-माफिया की नजर गगास घाटी को किसी बहाने हड़पने की है। अगर इसे अभी नहीं रोका गया तो एक महत्वपूर्ण घाटी को भू-माफिया के चंगुल में जाने से कोर्इ रोक नहीं सकता। जो लोग बाहर बस गये हैं उन्हें भी इस बात के लिये समझायें कि अपनी जमीन न बेचें। भू-माफिया सबसे पहले उन लोगों की जमीन लेते हैं, जो दशकों से गांव में नहीं रहते। उन्हें लगता है कि हमारी छूटी खेती का कुछ पैसा ही मिल जाये। इससे उसे औरों की जमीन खरीदने के आसानी होती है।
भू-माफिया अपने साथ स्थानीय बिचैलियों को रखता है, जो लोगों को कर्इ प्रलोभन देकर गुमराह करते हैं। इतना ही नहीं जो कंपनी क्षेत्र में आती है वह अपने यहां कुछ स्थानीय लोगों को रखकर लोगों को दो हिस्सों में बांटने का काम भी करती है। यह बात भी सबको समझनी होगी कि हम भले ही अभी लोग किन्हीं कारणों से अपनी जमीन नहीं कर रहे हैं, लेकिन यह हमारे पुरखों की थाती है। अभी किन्हीं कारणों से देश-विदेश कहीं भी रहें, यही जमीन है जो हमें अपने अतीत से जोड़े रखती है। इस जमीन में हमारी संस्कृति, हमारी भाषा, हमारी बोली, हमारा ढोल-दमाऊं, झोड़ा, जागर, शकुनाखर, होली, मेले, ठेले हैं। हम कहीं भी जायें हमारी जमीन है तो हमारा लोक देवता है। उस लोक देवता के थान को बचाने की कोशिश हर स्तर पर होनी चाहिये। जिसकी जमीन गर्इ, उसका जमीर गया। इसलिये अपनी जमीन को बचाकर हम अपनी आत्मा को बचाये रख सकते हैं।
च्याली में ग्रामीणों को गुमराह कर खुर्दबुर्द की जा रही इस कृषि भूमि के बारे में च्याली के ग्राम प्रधान प्रकाश भंडारी कहते हैं- ‘हम लोगों से हमेशा अपील करते हैं कि किसी के बहकावे में आकर अपनी जमीन न बेचें। यह हमारे पुरखों की धरोहर है। हम चाहते हैं जिस खेती पर हमारी कई पीढ़ियों ने अपना भरण-पोषण किया वह आज भी हमें रोटी-रोजगार दे सकती है। आवश्यकता उसे आज की परिस्थितियों के अनुकूल विकसित करने की है। त को चाहिए कि बजाय वह इस जमीन को किसी अनुत्पादक प्लांट लगाने की अनुमति देने के यहां सिंचाई की व्यवस्था कराये। छाना नहर के विकल्प के बारे में सोचे। लोगों को कृषि से जोड़ने की योजना बनाये। उससे पलायन रुकेगा। हमारी जमीनें बचेंगी।’
ग्राम सभा भेट के ग्राम प्रधान गिरीश भट्ट कहते हैं- ‘सरकार कहती है कि पलायन रुकना चाहिए। जब हमारी खेती ही नहीं रहेगी तो पलायन कैसे रुकेगा। सरकार को चाहिए कि वह किसी भी परियोजना के लिए कृषि जमीन के लिये संस्तुति न दे। गगास घाटी तो कृषि विकास का सबसे अच्छा माॅडल बन सकती है, इस पर सरकार ध्यान दे। हमारी कृषि योग्य जमीन को इस तरह बर्बाद करना ठीक नहीं है।’
छाना की ग्राम प्रधान दीपा रौतेला कहती हैं- ‘कृषि ही हमारी आर्थिकी का आधार रही है। इसी से हमारा अस्तित्व है। हम चाहते हैं कि हमारे क्षेत्र में सरकार कृषि, सिंचाई, पशुपालन और उद्यान विभाग के समन्वय से ऐसी योजना तैयार करें जिससे लोग खेती की ओर उन्मुख हों। इससे जो लोग अभी गांव में हैं वे भी अपना भरण-पोषण कर सकते हैं, जो लोग बाहर हैं वे गांव लौट सकते हैं। जिस तरह से किसी प्लांट को लगाकर खेती की भूमि ली जा रही है, वह पलायन को ही बढायेगी।’