मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने जंगल से जुड़ी बड़ी बाधा पार कर ली है। वह है उत्तराखंड प्रतिकरात्मक वनरोपण निधि प्रबंधन और योजना प्राधिकरण (कैंपा) के 265 करोड़ के अतिरिक्त बजट के लिए केंद्र को सहमत करना। अब जल्द ही यह राशि जारी होने से सरकार वन विभाग के माध्यम से 10 हजार वन प्रहरियों की तैनाती कर सकेगी तो जगलों में गर्मियों में लगने वाली आग से निबटने को अभी से तैयारियों में जुटेगी। साथ ही मानव-वन्यजीव संघर्ष थामने को कदम उठाने, रेसक्यू सेंटर बनाने और हरिद्वार कुंभ में अखाड़ों को जरूरत के अनुसार अस्थायी तौर पर वन भूमि की राह में दिक्कतें नहीं आएंगी।
अब कोर एजेंडे में शामिल हुआ गुलदार
उत्तराखंड के जंगलों में बाघों व हाथियों के बढ़ते कुनबे ने भले ही देश-दुनिया का ध्यान खींचा हो, लेकिन स्थानीय स्तर पर चर्चा के केंद्र में तो गुलदार के हमले ही हैं। पहाड़ी क्षेत्र हो या मैदानी, सभी जगह गुलदारों के खौफ ने आमजन की दिनचर्या को गहरे तक प्रभावित किया है। लगभग दो माह के अंतराल में ही गुलदार 12 व्यक्तियों की जान ले चुके हैं। ऐसा नहीं कि गुलदार के हमले एकाएक बढ़े हों, यह सिलसिला तो अविभाजित उत्तर प्रदेश के दौर से ही चला आ रहा है, मगर कभी भी यह मसला सरकार व वन महकमे के कोर एजेंडे में नहीं रहा। अब जबकि, पानी सिर से ऊपर बहने लगा है तो गुलदारों के व्यवहार में आ रहे बदलाव का अध्ययन शुरू किया गया है। गुलदार के कोर एजेंडे में शामिल होने से अब आने वाले दिनों में इस समस्या के निदान को प्रभावी कदम उठाए जाएंगे।
राज्य में गुलदारों के बढ़ते हमलों और जनसामान्य द्वारा इनकी संख्या में बढ़ोतरी की आशंका जताने के बाद वन महकमे को भी इसका अहसास हुआ है। 12 साल के इंतजार के बाद राज्य स्तर पर गुलदारों की गणना का निश्चय किया गया है। पिछली बार गुलदारों की आखिरी गणना 2008 में हुई थी। खैर, अब महकमे का इरादा दिसंबर से गुलदारों की गणना कराने का है। इसके लिए कसरत चल रही है। इसी कड़ी में महकमे ने राज्य के विश्वविद्यालयों, महाविद्यालयों में स्नातकोत्तर स्तर पर फॉरेस्ट्री का अध्ययन कर रहे विद्यार्थियों का सहयोग लेने का निश्चय भी किया है। इससे जहां मानव संसाधन की कमी दूर होगी, वहीं फॉरेस्ट्री के विद्यार्थी भी गुलदार गणना के गुर सीख सकेंगे। साथ ही निकट भविष्य में वन एवं वन्यजीव संरक्षण में उनकी भागीदारी सुनिश्चित की जा सकेगी। गणना से पहले चयनित विद्यार्थियों को प्रशिक्षण दिए जाने के लिए खाका खींचा जा रहा है।
सशक्त है उच्च हिमालयी क्षेत्र की जैवविविधता
उत्तराखंड के उच्च हिमालयी क्षेत्र के 10 वन प्रभागों के 12800 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में जिस तरह से हिम तेंदुओं के साथ ही घुरल, भरल समेत दूसरे वन्यजीवों का दीदार हो रहा है, वह यहां की सशक्त जैवविविधता को भी दर्शाता है। यह किसी से छिपा नहीं है कि समूचा उच्च हिमालयी क्षेत्र जड़ी-बूटियों का विपुल भंडार होने के साथ ही वन्यजीव विविधता को भी प्रसिद्ध है। उत्तरकाशी से लेकर पिथौरागढ़ और बदरीनाथ से लेकर अस्कोट अभयारण्य तक के क्षेत्र में लगे कैमरा ट्रैप में जिस तरह से हिम तेंदुओं समेत दूसरे वन्यजीवों की तस्वीरें कैद हो रही हैं, वह यह भी साबित करता है कि बेहतर वासस्थल होने के चलते इनकी संख्या में इजाफा हो रहा है। हालांकि, संख्या को लेकर सही स्थिति अगले माह से प्रारंभ होने वाली हिम तेंदुओं की गणना के बाद साफ हो सकेगी। इससे इनके वासस्थल को और सुदृढ़ करने में मदद मिलेगी।