अब फिक्र कश्मीर की.आजादी के बाद पहली बार कश्मीर बदल रहा है. पिछले 14 महीनों से कश्मीर की तस्वीर बदल रही है.घाटी में अमन शांति लौट रही है.आतंकवाद खत्म हो रहा है. और विकास जन्म ले रहा है. आजादी के बाद आर्टिकल 370 की जिन बेड़ियों ने कश्मीर को जकड़ रखा था, सत्ता की सियासत से वजूद में आए जिस कानून ने कभी धरती का जन्नत कहे जाने वाले कश्मीर को बदरंग कर दिया था. 5 अगस्त 2019 को वो अनुच्छेद हटाया गया तो घाटी में एक बार फिर उम्मीद की किरणें नजर आईं.सिर्फ 14 महीनों में असर दिखने लगा. रोजगार लौटा, पर्यटन बढ़ा, कश्मीर की अर्थव्यवस्था पटरी पर लौटने लगी.
बेनकाब होने लगे हैं सियासतदान
श्रीनगर में आज गुपकर इलाके में नेशनल कांफ्रेस के अध्यक्ष फारुक अब्दुल्ला के बंगले में कश्मीर के सियासी दलों की मीटिंग हुई. जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाला कानून अनुच्छेद 370 के हटाए जाने के खिलाफ मोर्चेबंदी की कोशिश हुई.
लेकिन सच तो ये है कि आजादी के बाद 70 सालों तक जम्हूरियत की आड़ में कश्मीर को अलगाववाद और आतंकवाद का अखाड़ा बनाने वाले ये सियासतदान बेनकाब होने लगे हैं.
अब हम आपको बताते हैं ये गुपकर घोषणा क्या है, कैसे जम्मू कश्मीर की सियासी पार्टियां इस घोषणा के सहारे एक बार फिर अनुच्छेद-370 पर सियासत के लिए लामबंद हो रही हैं.कश्मीर की अवाम को गुमराह करने की चाल रच रही है.
जम्मू-कश्मीर को दोबारा विशेष दर्जा दिलाने के लिए संघर्ष का ऐलान
4 अगस्त 2019,यानी जिस दिन जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाला अनुच्छेद हटाया गया. उससे ठीक एक दिन पहले नेशनल कांफ्रेंस के अध्यक्ष फारुक अब्दुल्ला के घर पर जम्मू-कश्मीर की सियासी पार्टियों की एक मीटिंग हुई.बैठक में महबूबा मुफ्ती की पीडीपी, सज्जाद लोन की पीपुल्स कांफ्रेंस, कांग्रेस और लेफ्ट पार्टियां शामिल थी. मीटिंग के बाद गुपकर घोषणा का ऐलान किया गया.बैठक फारुक के गुपकर आवास पर हुई थी इसलिए इसे गुपकर घोषणा कहा गया.
जिसमें जम्मू कश्मीर के सियासी दलों ने एक दिन बाद अनुच्छेद 35A और 370 पर आने वाले फैसले को असंवैधानिक बताया.राज्य के बंटवारे को कश्मीर और लद्दाख के लोगों के खिलाफ ज्यादती बताया.जम्मू-कश्मीर को दोबारा विशेष दर्जा दिलाने के लिए संघर्ष का ऐलान किया. गुपकर घोषणा के ऐलान के बाद नेशनल कांफ्रेंस के अध्यक्ष फारुक अब्दुल्ला ने कहा वो इस मसले को संसद में उठाएंगे.गांधीवादी तरीके से आंदोलन करेंगे.
जाहिर है सियासी घोषणा और अहिंसक आंदोलन के दावों की आड़ में जम्मू-कश्मीर के अवाम को उकसाने की तैयारी थी.अनुच्छेद 370 के खिलाफ पार्टी कार्यकर्ताओं को प्रदर्शन के लिए सड़कों पर उतार कर आम लोगों को भड़काने का इरादा था.लेकिन केन्द्र सरकार ने विशेष दर्जा का कानून हटाने के साथ ही सियासी दलों के बड़े चेहरों को नजरबंद कर दिया.कश्मीर को अस्थिर करने की बड़ी साजिश को नाकाम कर दिया.
5 अगस्त 2019 को नजरबंद किए गए सियासी चेहरों में नेशनल कांफ्रेंस के अध्यक्ष फारुक अब्दुल्ला, उनके बेटे और पूर्व सीएम उमर अब्दुल्ला और पीडीपी अध्यक्ष महबूबा मुफ्ती भी शामिल थीं.
कल के सियासी दुश्मन बन गए मतलब के दोस्त
फिर 7 महीने बाद सबसे पहले फारूक अब्दुल्ला 13 मार्च 2020 को रिहा हुए. जिसके 11 दिन बाद 24 मार्च 2020 को उमर अब्दुल्ला और नजरबंद किए जाने के करीब 14 महीने बाद महबूबा मुफ्ती रिहा हुईं.जम्मू-कश्मीर की सियासी पार्टियों को जैसे इसी बात का इंतजार था.13 अक्टूबर को महबूबा की रिहाई के साथ ही एक बार फिर घाटी में सत्ता की सियासत गरम हो गई.कल के सियासी दुश्मन मतलब के दोस्त बन गए.कश्मीर में पाकिस्तान और चीन के सियासी एजेंटों का मुखौटा उतर गया.भारत विरोधी सुर तेज हो गए.
सियासतदानों ने जहरीले बयानों से कश्मीर की अवाम को भड़काया
5 अगस्त 2019 के ऐतिहासिक फैसले के पहले भी इन सियासतदानों ने अपने जहरीले बयानों से कश्मीर के अवाम को खूब भड़काया.भारत के खिलाफ खुलकर अंगारे उगले, धमकियां दी. लेकिन सच तो ये है अब्दुल्ला और मुफ्ती परिवारों की तमाम कोशिशों के बावजूद भारत के खिलाफ अवाम की भावनाएं भड़काने की हर कोशिश के बावजूद कश्मीर विकास के रास्ते पर बढ़ चला है.एक बार फिर धरती का जन्नत बनने की राह चल पड़ा है.
नजरबंदी से बाहर निकलकर दोबारा अपनी सियासी जमीन तलाशते इन चेहरों की असलियत अवाम की समझ में आ चुकी है.इनकी बौखलाहट की हकीकत आम जनता जान चुकी है.