चम्पावत : कम मेहनत पर अधिक उत्पादन की होड़ ने जिले में परंपरागत खेती को हाशिये पर ला दिया है। कई काश्तकार अधिक उत्पादन के लिए खेतों में रासायनिक खादों का उपयोग भी करने लगे हैं। ऐसे में पाटी विकास खंड के युवा काश्तकार हुकुम सिंह कुंवर हाड़तोड़ मेहनत के बल पर परंपरागत खेती को नई पहचान देने में जुटे हैं।
पाटी विकास खंड के चल्थिया गाव निवासी हुकुम सिंह मथुरा में होटल लाइन में काम करते थे। काम में तरक्की न होता देख वे 10 वर्ष पूर्व घर लौट आए और कृषि कार्य से जुड़ने का फैसला लिया। वर्ष 2012 से वे अपने घर के पास 80 नाली जमीन पर धान, मादिरा, झिगुरा, जौं, मडुवा, लोबिया, गहत, बेल वाली राजमा, उड़द आदि की खेती कर रहे हैं। खास बात यह है कि उन्होंने पहाड़ से विलुप्त हो गए जौलिया धान की खेती को फिर से शुरू करवाने में महत्वपूर्ण योगदान किया है। इस धान का बीज तैयार कर वे अन्य लोगों को भी उपलब्ध करा रहे हैं। उनके इस प्रयास से चल्थिया गाव में अधिकाश काश्तकार जौलिया धान की खेती करना शुरू कर चुके हैं। कोच्या व चीचन प्रजाति की अरबी की खेती कर वे अच्छा खासी आय अर्जित कर रहे हैं।
हुकुम ने बताया कि वे खेती में जैविक खाद का उपयोग करते हैं जिससे उनकी गुणवत्ता काफी अच्छी होने से खरीदार मिल जाते हैं। 10 नाली क्षेत्र में वे बड़पास और जौलिया धान की खेती कर रहे हैं। उन्होंने बताया कि कई लोग उनके पास आकर परंपरागत खेती के गुर सीख रहे हैं। लेकिन अभी तक शासन प्रशासन की ओर से उन्हें कोई भी मदद नहीं मिल पाई है। उन्होंने बताया कि संबंध संस्था द्वारा समय-समय पर उनका मार्गदर्शन किया जाता है। संस्था के सचिव जीवन जोशी ने बताया कि हुकुम के माध्यम से जिले के अन्य काश्तकारों को परंपरागत खेती का प्रशिक्षण दिलाया जाएगा।
हुकुम सिंह कुंवर ने परंपरागत खेती को बढ़ावा देने में काफी अहम योगदान दिया है। धान, मडुवा, रामदाना और झिगुरा की खेती काफी कम किसान कर रहे हैं। विभाग उन्हें सर संभव मदद देगा।
-राजेंद्र उप्रेती, मुख्य कृषि अधिकारी चम्पावत