त्रिपाठी कांड: अमनमणि के मामले को रफा दफा करने में लगे हैं उत्तराखंड के बड़े नौकरशाह !

देहरादून (नेटवर्क 10 संवाददाता)। उत्तराखंड में त्रिपाठी कांड इतनी धमक मचा चुका है, पूरी अफसरशाही हिली हुई है। हर एक की जुबान पर इस कांड की बात है, लेकिन उत्तराखंड सरकार है कि टस से मस नहीं हो रही है। आखिर ऐसी कौन सी मजबूरी है सरकार की जो अमनमणि के खिलाफ कार्रवाई से वो हिचक रही है। इश मामले को सबसे पहले नेटवर्क 10 टीवी ने उठाया था। मामला गर्माने के बाद यूपी सरकार ने तुरंत कार्रवाई की और उत्तराखंड से यूपी लौटते वक्त नजीवाबाद में अमनमणि को गिरफ्तार कर लिया।

शासकीय प्रवक्ता और कैबिनेट मंत्री मदन कौशिक ने विधायक अमनमणि त्रिपाठी को बद्रीनाथ जाने की अनुमति देने के मामले को अफसरों की चूक माना और पूरे मामले की जांच की बात भी कही, लेकिन अब तक इस मामले में जांच अधिकारी नियुक्त नहीं हुआ है। बाद में राज्य के  मुख्य सचिव उत्पल कुमार सिंह की तरफ से कहा गया कि अमनमणि के मामले में मुनि की रेती पुलिस ने जो एफआइआर दर्ज की है, उसी के आधार पर इसकी जांच होगी और अलग से कोई जांच अधिकारी नियुक्त नहीं किया जाएगा।

मामले को लेकर जो अलग अलग बयान आ रहे हैं उनसे यही लगता है कि मामले को रफा दफा करने की कोशिश की जा रही है। दरअसल मामला पूरी तरह हाईप्रोफाइल है। आप इसका अंदाजा इसी बात से लगा सकते हैं कि तमाम नियम कायदों को ताक पर रखकर खुद मुख्यमंत्री के अपर मुख्य सचिव ने अमनमणि और उनके 11 साथियों का बद्रीनाथ यात्रा का पास बना डाला। जबकि चारधाम जाने की किसी को इजाजत नहीं है। और तो और बद्रीनाथ धाम के तो अब तक कपाट भी नहीं खुले हैं।

ये सवाल अब तक बने हुए हैं कि आखिर विधायक को अनुमति क्यों दी गई। उनके लिए प्रदेश में क्यों रेड कार्पेट बिछाया गया। क्यों सरकारी काम में बाधा व बदसलूकी के मामले दर्ज नहीं किए गए। इस मामले में उत्तराखंड को यूपी आईना दिखा चुका है लेकिन उत्तराखंड सरकार के बड़े लोग और अफसर इस तरह ढीठपने का प्रमाण दे रहे हैं कि लोग स्तब्ध हैं। यही विधायक जब उत्तराखंड से अपने राज्य उत्तर प्रदेश पहुंचते हैं तो कानून के उल्लंघन के आरोप में उन्हें गिरफ्तार कर क्वारंटाइन में भेज दिया जाता है। प्रश्न उठ रहा कि ऐसा साहस उत्तराखंड क्यों नहीं दिखा पाया।

जमकर छीछालेदर होने के बाद सोमवार को शासकीय प्रवक्ता एवं कैबिनेट मंत्री मदन कौशिक ने विधायक को अनुमति दिए जाने को अफसरों की चूक माना था। साथ ही मामले की जांच की बात कही थी। इसके बावजूद जिम्मेदारों के खिलाफ एक्शन तो दूर अभी तक कोई जांच अधिकारी नियुक्त न होना, सरकारी रवायत पर सवाल खड़े करता है। मंगलवार को मुख्य सचिव उत्पल कुमार सिंह ने जांच कमेटी के सवाल को टाल दिया। अलबत्ता, कहा कि कानून सबके लिए बराबर है। जो एफआइआर दर्ज हुई है, उसी के आधार पर विवेचना होगी और जो निकलकर आएगा, उसी के अनुरूप कार्रवाई होगी।

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