देहरादून (नेटवर्क 10 संवाददाता)। उत्तराखंड में हुए इतने बड़े त्रिपाठी कांड पर आखिर सरकार की तरफ से चुप्पी तोड़ी गयी है। लेकिन हैरत की बात ये है कि इस घटना को सरकार ने मात्र एक चूक माना है। सरकार की तरफ से उसके प्रवक्ता और कैबिनेट मंत्री मैदान कौशिक ने कहा कि यूपी के विधायक अमनमणि त्रिपाठी के मामले में चूक हुई है। हम पूरी तरह से अलर्ट हैं और अलर्ट रहे हैं तभी तो प्रशासन ने अमनमणि और उनके साथियों को कर्णप्रयाग से वापस लौटाया।
लेकिन यहाँ सवाल इतनी बड़ी घटना को चूक बताकर इस पर पर्दा डालने से खत्म नहीं होता। सवाल का जवाब तो तब मिलेगा जब सरकार इस पूरे प्रकरण के लिए ज़िम्मेदार व्यक्ति का नाम सामने लाएगी और ये बताएगी की फलां व्यक्ति, अफसर या तंत्र इसके लिए ज़िम्मेदार है और उसके खिलाफ ये कार्रवाई की जा रही है।
विधायक अमनमणि त्रिपाठी और उनके 11 साथियो की बद्रीनाथ यात्रा का पास मुख्यमंत्री के अपर सचिव ओमप्रकाश ने बनाया था। यर सबको पता है, लेकिन ओमप्रकाश को पास बनाने का आदेश दिया किसने? ये बाद सवाल है। क्या ओमप्रकाश को यूपी से आदेशित किया गया? क्या दिल्ली से आदेश आया? या फिर ओमप्रकाश ने अमनमणि के कहने भर से ही पास बना दिया?
उक्त तीनो ही बातें किसी को नहीं पच रही हैं। चारों तरफ से सवाल राज्य सरकार पर ही उठ रहे हैं। तमाम राजनेता, बुद्धिजीवी और राज्य आंदोलनकारियों का स्पष्ट कहना है कि पास मुखयमंत्री के अपर सचिव द्वारा जारी किया गया है यानी इस प्रकरण में मुख्यमंत्री कार्यालय इन्वॉल्व है। सो मुख्यमंत्री की तरफ से इस पर स्पष्टीकरण दिया जाना चाहिए।
आवाज़ उठ रही है कि जो सरकार कोरोना जैसे महायुद्ध को जीतने के लिए जोर शोर से लगी है और यहाँ तक कि अपने प्रदेश के लोगों को ही चार धाम नहीं जाने दे रही है वो एक दूसरे प्रदेश के विधायक को 11 लोगों के लाव लश्कर के साथ सम्मान से बद्रीनाथ कैसे भेज सकती है जबकि वहाँ के कपाट अभी तक खुले ही नहीं हैं।
क्या कहते हैं बुद्धिजीवी?
– हैरत की बात है कि प्रदेश में इतनी बड़ी घटना होती है और मुख्यमंत्री की तरफ से कुछ करना तो दूर, कुछ कह भी नहीं जाता है। आखिर बिना मुख्यमंत्री की इजाज़त के ये सब कैसे हो सकता है। मुख्यमंत्री को मामले को दबाने की बजाय इस पर कार्रवाई कर जनता को संदेश देना चाहिए। विधायक त्रिपाठी यूपी से उत्तराखंड में प्रवेश कैसे पा गया ये पहला सवाल है। फिर योगी के पितृ पूजन के लिए उसको जाने का पास किस मूर्खता में जारी कर दिया गया? चारधाम यात्रा खुद सरकार ने रोक रखी है फिर विधायक और उसके 11 साथियों को जाने की इजाज़त कैसे? जय सिंह रावत, वरिष्ठ पत्रकार
– जब चारधाम यात्रा बंद रखी गयी है, प्रदेश की सीमाएं सील हैं, अपने प्रदेश के लोगों को ही प्रदेश में लौटकर आने की इजाज़त अब तक नहीं थी तो विधायक को पास जारी किया जाना पूरे तंत्र को कठघरे में खड़ा करता है। जिस अधिकारी ने पास जारी किया और जिसने उसको आदेशित किया वो दोनों जिम्मेदार हैं और इस मामले पर कार्रवाई की जानी चाहिए। जनता के सामने इस मामले में भी सरकार को पारदर्शी होने का परिचय देना पड़ेगा। किरण शर्मा, वरिष्ठ पत्रकार
– ये सारी घटना बिना सरकार के इन्वॉल्वमेंट के नहीं हुई है। उत्तराखंड सरकार को इसके लिए ज़िम्मेदारी लेनी होगी और ज़िम्मेदार के खिलाफ कार्रवाई करनी होगी। जिस दिन ये घटना हुई है उसी दिन उत्तराखंड सरकार ने सभी इच्छुक प्रवासी उत्तराखंडियों को प्रदेश में लाने की व्यवस्था करने के आदेश को वापस लिया था और दूसरी तरफ उत्तर प्रदेश के विधायक को उस धाम में जाने की इजाज़त दे दी थी जिसके द्वार अभी खोले ही नहीं गए। ये कैसा फैसला? चारु तिवारी, वरिष्ठ पत्रकार और राज्य आंदोलनकारी
क्या कहते हैं राजनेता?
– जिस अधिकारी ने पास जारी किया है उसने अपने मन से तो पास बनाया नही। अगर बनाया तो उसके खिलाफ कार्रवाई हो। पास बनाने वाला अधिकारी मुख्यमंत्री का अपर मुख्य सचिव है, यानी मुख्यमंत्री कार्यालय से पास बनाया गया। पूरे मामले के लिए पूरी तरह सरकार ज़िम्मेदार है। किशोर उपाध्याय, पूर्व प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष
– इस सरकार को अपने लोगों की तो कोई चिंता नही है। फैसले लेने में ये सरकार नाकाम है। दूसरे प्रदेशों में फंसे अपने लोगों को कैसे वापस लाया जाए, ये फैसला करने में सरकार को महीनेभर से ज़्यादा वक्त लग गया, लेकिन एक गुंडे विधायक का पास सेकण्ड्स में बना दिया। सारे नियम ताक पर रख दिये गए। मुख्यमंत्री को पूरे मामले पर बयान देना चाहिए और करवाई करनी चाहिए। समीर मुंडेपी, नेता, यूकेडी
– हां मामले में चूक हुई लेकिन इस चूक को तुरंत प्रशासन द्वारा ही सुधार लिया गया। सरकार का तंत्र अगर अलर्ट न होता तो कर्णप्रयाग से किसने विधायक और उनके साथियों को वापस लौटाया। मदन कौशिक, प्रवक्ता, प्रदेश सरकार