सरकार ! इस बार दी गई ये ढील कहीं बहुत महंगी न पड़ जाए…

देहरादून (नेटवर्क 10 डेस्क)। लॉकडाउन का तीसरा दौर आज से शुरू हुआ है और जो हालत सड़कों एवं बाजारों में दिख रहे हैं वो भविष्य की भयावहता की तरफ इशारा कर रहे हैं। जहां निकलो वहीं भीड़ दिख रही है। हर सड़क पर वाहनों का हुजूम उमड़ा हुआ है। बिल्कुल आम दिनों की तरह। एक महीने पहले जो हालात थे वैसे ही नजर आ रहे हैं।

शराब की दुकानों को खोलने का भी आदेश हुआ तो सुबह से ही वहां लाइनें लग गईं। सबसे ज्यादा भीड़ शराब की दुकानों के बाहर लगी है। ये बात अलग है कि वहां सोशल डिस्टेनसिंग का पूरा ख्याल रखा जा रहा है। सोशल डिस्टेंसिंग देख एक तरह से वह तस्वीर थोड़ा सुकून देती है। लेकिन बाकी जगह जो हाल है वो डरावना है।

इतनी जल्दी भी क्या थी

लगता तो है कि सरकार ने ढील देने में कुछ जल्दबाजी कर दी है। इंसानों की एक भीड़ दूसरे प्रदेशों से उत्तराखंड की तरफ आ रही है। ये वे लोग हैं जो उन प्रदेशों से आ रहे हैं जहां कोरोना महामारी कहीं अधिक भयानक रूप पहले ही ले चुकी है। क्या आपको लगता है कि उत्तरखंड के एक लाख से ज्यादा लोग दूसरे प्रदेशों में फंसे हुए हैं? ये वो आंकड़ा है जो प्रदेश लौटने के लिए रजिस्ट्रेशन करा चुके हैं। जनाब, नहीं लगता। दूसरे प्रदेशों में जो भी उत्तराखंडी हैं वो वहां नौकरी करते हैं। फंसे हुए नहीं हैं। उनको तो वहां फिर लौटना है। ऐसे लोगों को इस तरह का न्योता दिया क्यों है? ये वो भीड़ है जिसके प्रदेश में आने से संक्रमण का खतरा कई गुना बढ़ जाएगा। हां, कुछ उत्तराखंडी अन्य प्रदेशों में फंसे हुए हो सकते हैं लेकिन उनकी संख्या कुछ सौ ही होगी। सिर्फ उनको प्रमाण के साथ वापस लाने का फर्ज बनता था, न कि तमाम उन लोगों को जो उत्तराखंड मूल के होने के नाते खुद को फंसा हुआ बता रहे हैं।

कहां क्वारंटाइन किए जाएंगे इतने लोग

ये सवाल सबके मन में है कि आखिर लाख से ज्यादा की संख्या में दूसरे प्रदेशों से आने वाले उत्तराखंडियों को कहां क्वारंटाइन किया जाएगा। गांवों में पंचायत भवनों और स्कूलों का हवाला दिया जा रहा है लेकिन दूसरी तरफ होम क्वारंटाइन की बात भी सरकार कर रही है। हुजूर, गांवों में अपने घर में होता कौन है क्वारंटाइन?

शराब की दुकाने खोलने की जरूरत क्या थी

हम सब जानते हैं कि उत्तराखंड की आर्थिकी काफी हद तक शराब की बिक्री पर टिकी है, लेकिन क्या ये जान से ज्यादा प्यारी है? अगर नहीं, तो शराब की दुकानें खोलने की इतनी जल्दी क्या थी? देख रहे हो शराब की दुकानों के बाहर  लगी भीड़ को। सिर्फ शराब खरीदने तक ही तो सोशल डिस्टेंसिंग का ख्याल रखा जा रहा है। दुकान से निकलते ही वही हालात, बेतरतीब भीड़। अगर शराब की बिक्री करनी ही थी तो दूसरे रास्ते भी थे। होम डिलीवरी की सुविधा दी जा सकती थी।

भीड़तंत्र को कैसे रोकोगे

आज ढील के पहले ही दिन देहरादून जैसे शहर में जगह जगह भीड़ दिख रही है। ज्यादातर लोग बेपरवाह घूम रहे हैं। न मास्क लगा है और न सोशल डिस्टेंसिंग का ध्यान रखा जा रहा है। आखिर इस भीड़तंत्र को कंट्रोल कैसे करोगे?

बेहतर होता कि 14 दिन और इंतजार किया जाता। पब्लिक आपकी सभी बातें मान रही थी। घरों में थी। नियम से ही निकल रही थी। लेकिन ऐसी ढील देकर आपने ही हालात बिगाड़ने का काम किया है। ऐसा न हो कि ये ढील बहुत भारी पड़ जाए…

 

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