रुद्रपुर, : खिलौनों की दुकानों की तरफ से आप क्यों गुजरे, ये बच्चे की तमन्ना है, यह समझौता नहीं करती। शायर मुनव्वर राना का यह शेर खिलौने के प्रति बच्चों के प्रेम को बयान करता है। लेकिन खिलौने के प्रति आकर्षण की बात की जाए तो जिले के शक्तिफार्म में बनाए जा रहे टैडी बियर देखकर बच्चों के साथ बड़े भी अाकर्षित हुए बिना नहीं रहते। जहां गांव की महिलाएं समूह में काम करके खिलौने बना रही हैं। अपनी दैनिक दिनचर्या में थोड़ा सा समय निकालकर महिलाएं एक साथ बैठती हैं और काम करती हैं। जिससे वह अपना खर्च निकालने के साथ ही घर गृहस्थी के काम भी आसानी से कर लेती हैं।
खिलाैनों की बात की जाए तो चीनी बाजार का जिक्र जरूर आएगा। जहां हर तरह के उत्पाद बनाए जा रहे हैं और भारतीय बाजार में बिकने के लिए भेजे जा रहे हैं। लेकिन शक्तिफार्म क्षेत्र में शुभांगी स्वयं सहायता समूह के जरिए बनाए जा रहे यह खिलौने चीनी उत्पाद को भी टक्कर दे रहे हैं। साफ्ट ट्वाएज श्रेणी के खिलौने बच्चों को खेलने के साथ ही लोग ड्राइंग रूम, कार आदि में सजाने के लिए भी प्रयोग कर रहे हैं। इनकी कीमत भी 100 रुपये से लेकर दो हजार तक है।
सितारगंज के शक्तिफार्म नंबर दो, गुरुग्राम निवासी केका रानी ने गांव की महिलाओं को यह काम सिखाया है। केका ने बताया कि उनकी शादी भी पास में ही शक्तिफार्म नंबर एक, बैकुंठपुर में हुई है। ऐसे में ससुराल की महिलाओं के साथ भी अब वह कार्य कर रही हैं। बड़ौदा स्वरोजगार संस्थान से खिलौनों का प्रशिक्षण लेने के बाद केका रानी ने घर पर कार्य शुरू किया। थोड़े ही दिनों में बेहतर खिलौने बनने लगे तो गांव की अन्य महिलाओं को भी अपने साथ जोड़ लिया है। जहां से अब सभी सामूहिक रूप से कार्य करके कमाई कर रहे हैं। केका रानी ने बताया कि कोविड की वजह से बिक्री प्रभावित हुई है। फिर भी सभी का काम ठीक चल रहा है। खिलौने फुटकर व थोक दोनों तरह से बेचे जा रहे हैं।
रुद्रपुर के सरदार भगत सिंह डिग्री कॉलेज से राजनीति विज्ञान में पोस्ट ग्रेजुएट केका रानी पढ़ाई के बाद असिस्टेंट प्रोफेसर बनना चाहती थी। लेकिन खिलौने के काम ने उनके अंदर स्वरोजगार का आत्मविश्वास पैदा कर दिया है। जिससे अब वह स्थानीय महिलाओं के साथ कार्य करके बेहतर महसूस कर रही हैं। जिसमें प्रत्येक महिला करीब छह हजार रुपये तक की मासिक आय प्राप्त कर रही है। जिससे अब जीवन की दिशा ही बदल गई है।