उत्तराखंड में आखिर हिल ही गईं बिचौलियों और माफियाओं की जड़ें, त्रिवेंद्र अभी और कसेंगे लगाम

देहरादून (नेटवर्क 10 संवाददाता)। उत्तराखंड राज्य में जो बीस साल में नहीं हुआ वो त्रिवेंद्र सरकार में देखने को तो मिला ही है। एक तरफ पूरा देश कोरोनाकाल में भारी आर्थिक संकटों से गुजर रहा है, हर राज्य आर्थिक तौर पर बुरे दौर में है। ठीक इसके उलट उत्तराखंड का का राजस्व बढ़ रहा है। आंकड़ों के मुताबिक कोरोनाकाल में उत्तराखंड सरकार ने ऐसे कदम उठाए कि राज्य का राजस्व एक महीने में सात सौ करोड़ हुआ है। ये बेहद अच्छे संकेत हैं और अंत में इसका फायदा राज्य की जनता को ही होना है।

दूसरी तरफ बात की जाए तो राज्य में दलालों और माफियाओं पर पूरी तरह लगाम लगाने में त्रिवेंद्र सरकार कामयाब रही है। अपने बीस साल के इतिहास में राज्य की सरकारें सबसे ज्यादा बदनाम दलाली और माफियाराज के लिए ही रही हैं। ठीक इसके उलट त्रिवेंद्र सरकार ने इन दोनों पर कड़ी लगाम कसी है। भ्रष्टाचार के खिलाफ जीरो टॉलरेंस की नीति पर काम करने वाले त्रिवेंद्र सिंह रावत ने राज्य में ट्रांसफर पोस्टिंग का खेल पूरी तरह खत्म कर डाला। इस काम में जमकर दलाली करने वालों की नकेल पूरी तरह कस ली गई। दूसरी तरफ माफिया राज को जड़ से खत्म करने में तो सालों लगेंगे लेकिन त्रिवेंद्र सिंह रावत ने माफिया की चूलें हिलाकर रख दी हैं।

त्रिवेंद्र राज में दलाली की दाल न गलने से सत्ता के गलियारों में वर्षों से दलाली करने वाले ये दलाल अब बुरी तरह हताश हो गये हैं। इसी का नतीजा है कि खासकर सोशल मीडिया में ऐसे दलाल तथाकथित पत्रकारों ने त्रिवेंद्र रावत को हर हाल में बदनाक करने के लिए तमाम तरह के हथकंडे अपनाने शुरू किए, लेकिन वे भी बेनकाब हो गए। राज्य गठन के बाद उत्तराखंड में खनन, शराब, ट्रांसफर-पोस्टिंग, टेंडर व सरकारी जमीनों को खुर्द-बुर्द करने वाले माफियाओं का धंधा खूब फलता फूलता रहा। राजनीतिक दलों और उनके कार्यकर्ताओं के साथ-साथ इस धंधे में वो लोग भी आये जो पत्रकारिता की आड़ में पहले से ही सत्ता का मजा ले रहे थे। सचिवालय व मंत्रालयों में ऐसे दलाल मोटी-मोटी फाइलें लेकर दिन भर माल समेटा करते थे। कुछ हाई प्रोफाइल दलाल तो बड़े नेताओं, मंत्रियों व बड़े अफसरों के रिटायरिंग रूम में बेखौफ पड़े रहते थे।

2017 में त्रिवेंद्र सिंह रावत के नेतृत्व में भाजपा की प्रचंड बहुमत की सरकार ने जब कामकाज शुरू किया तो दलालों व माफिया ने भी सरकार में एंट्री मारने के लिए पूरी ताकत झोंक दी। माफिया यहां के खनन, शराब, टेंडर और ट्रांसफर पोस्टिंग जैसे कामों को पहले ही उद्योग का रूप दे चुका था, इसलिए यह माना जा रहा था कि इस सरकार में भी यह सब पहले की तरह बदस्तूर चलता रहेगा। अब पता चल रहा है कि मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने शपथ लेते ही दलालों की कमर तोड़ने का पूरा मन बना लिया था। इसलिए उन्होंने सरकार बनाते ही कुछ ऐसे फैसले लिये जो जिसने दलालों व माफिया के कैंप में खलबली मचा दी।

त्रिवेंद्र रावत ने कुर्सी संभालते ही सबसे पहले ट्रांसफर एक्ट बना दिया। इसका नतीजा ये हुआ कि राज्य में ट्रांसफर-पोस्टिंग का खेल बंद हो गया। आपको बता दें कि इस खेल में हर साल करोड़ों अरबों का वारा न्यारा होता था। ट्रांसफर के खेल में वारे न्यारे करने वाले दलाल एक शिक्षक से लेकर इंजीनियर और एसडीएम, तहसीलदार, थानेदार से लेकर दूसरे अधिकारियों की भी बोली लगाते थे। ट्रांसफर एक्ट आने के बाद इन दलालों की कमर टूट गयी। उसके बाद  त्रिवेंद्र सरकार ने टेंडर की प्रक्रिया को भी मैनुअल से हटा कर ई-टेंडरिंग कर दी। जिन दलालों ने टेंडर दिलवाने के काम के ठेके ले रखे थे उनके लिए भी मुहं दिखाना मुश्किल हो गया, सरकार के इस फैसले से दलालों की इस सेक्टर में भी एंट्री बंद हो गयी।

दलाली का एक और बड़ा सेक्टर था खनन। यहां खनन में हर साल अरबों-खरबों का कारोबार होता है। माफिया और दलाल इस पूरे खनन के कारोबार पर एकाधिकार करके सरकारी खजाने को तो चूना लगा ही रहे थे आम आदमी को भी इस कमाई वाले क्षेत्र में नहीं घुसने दे रहे थे। खनन पट्टों का अलाटमेंट शासन स्तर से होने के कारण दलालों के यह आसान होता था कि पट्टे किसे दिलाये जाएं। सरकार ने पिछले तीन साल में खनन सेक्टर में बड़े परिवर्तन कर दिये हैं। अब खनन के पट्टे जिलाधिकारी के स्तर से आवंटित होते हैं। जिलाधिकारी को इसमें होने वाली हर तरह की गड़बड़ी वह चाहे राजस्व चोरी की हो, अनियम तरीके से खनन करने का हो, या फिर एग्रीमेंट से बाहर जाकर खनन का मसला हो, के लिए सीधे जिम्मेदार ठहराते हुए पट्टे निरस्त करने का अधिकार भी सरकार ने दे दिया है। इस व्यवस्था से खनन में एकाधिकार रखने वाले माफिया पर सरकार का जोरदार हंटर चला और उनकी भी कमर टूट गयी।

खनन, शराब, ट्रांसफर माफिया के बाद त्रिवेंद्र रावत का चाबुक भू-माफिया पर चला। रेरा के तहत भू-माफियाओं पर नकेल कसते हुए त्रिवेंद्र सरकार ने सरकारी जमीनों को खुर्द-बुर्द करने वाले दलालों की मंशाओं पर पानी फेरते हुए जमीनों की अवैध खरीद-फरोख्त पर लगाम लगाई। इसके अलावा जनहित कार्यों के नाम पर कब्जाई गई हजारों एकड़ जमीन सरकार में निहित करवाई। देहरादून में अंगेलिया सोसाइटी की ११०० एकड़ जमीन सहित डोईवाला में सैकड़ों एकड़ जमीन और ऊधमसिंह नगर में पराग फार्म की जमीन सहित कई अन्य अरबों-खरबों की जमीनों को राज्य सरकार में निहित करवा दिया।

 

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