नैनीताल (नेटवर्क 10 संवाददाता)। उत्तराखंड वीरों की धरती है। यह एक से बढ़कर एक वीर हुए हैं। किस किस की कहानी बयां की जाए। जो कहा जाए वो कम। यहां के वीरों की कहानियां अगर बांचने लगें तो सदियां बीत जाएंगी। एक ऐसे ही वीर हुए गंगोलीहाट के नाली गांव के रहने वाले शंकर सिंह महरा। शंकर सिंह महरा दो दिन पहले ही जम्मू कश्मीर के उरी सेक्टर में पाकिस्तान की तरफ से की जा रही गोलीबारी में शहीद हो गए थे। शंकर सिंह महरा के अंतिम शब्द सुनकर किसी की भी आंखों में आंसू आ जाएंगे। शंकर सिंह महर ने जब अपनी मां से आखिरी बार बात की थी तो कहा था- मां फायरिंग शुरू हो गई है, अभी फोन रखता हूं, बाद में करूंगा…। यही उनके आखिरी शब्द थे।
मां को नहीं बताई गई थी शहादत की खबर
अपने लाल की शहादत की खबर सुनने के बाद मां बदहवास है और शंकर सिंह की पत्नी अचेत है। शहीद के पिता की आंखें पथरा गई हैं। शहीद का एक अबोध बच्चा भी है। वो महज पांच साल का है। शकर सिंह की शहादत पर पूरा इलाका गर्व कर रहा है लेकिन दूसरी तरफ अपने लाल के जाने के बाद सभी शोक में डूबे हुए हैं। शंकर सिंह जब सीमा पर शहीद हुए तो शुक्रवार की देर शाम को ही गांव में खबर पहुंच गई, लेकिन उनकी माता को यह दुखद समाचार नहीं सुनाया गया। शनिवार की सुबह जब गांव के लोग वहां पहुंचने लगे तो उन्हें कुछ अनहोनी की आशंका हुई। उन्होंने पूछा कि कहीं उनके शंकर के साथ कुछ हुआ तो नहीं। फिर जब बेटे की शहादत की खबर उन्हें दी गई तो वह गश खाकर गिर पड़ीं।
शंकर के पिता भी फौजी थे, भाई भी सेना में जवान है…
नायक शंकर सिंह महरा फौजी परिवार से हैं। उनके पिता भी फौज से रिटायर हैं और छोटा भाई भी सेना में जवान है। उनके छोटे भाई का नाम नवीन सिंह है और वो राष्ट्रीय रायफल मे है। इन दिनों वो भी जम्मू कश्मीर में ही तैनात है। शंकर सिंह महरा 11 वर्ष पूर्व सेना में भर्ती हुआ था। वर्तमान में 21 कुमाऊं रेजिमेंट में नायक पद जम्मू कश्मीर में तैनात था। सात साल पूर्व शादी हुई थी। पांच वर्षीय एक पुत्र हर्षित है। वह मां के साथ रह कर हल्द्वानी में पब्लिक स्कूल में एलकेजी में पढ़ता है। लॉकडाउन के चलते इस समय मां और बेटा गांव आए हैं। शंकर अपने मृदु व्यवहार को लेकर ग्रामीणों का चहेता था। शंकर की शहादत की खबर से पूरा गांव रो रहा है। शंकर सिंह महरा डेढ़ माह पूर्व अवकाश पूरा करने के बाद ड्यूटी में लौटा था। जाते समय मां से जल्दी घर आने को कह कर गया था। इधर मात्र डेढ़ माह बाद ही शहीद होने की सूचना मिली है। जिसे याद कर मां रो रही है ।
जनवरी में छुट्टी आए थे शंकर सिंह
शहीद शंकर सिंह जनवरी में छुट्टी पर घर आए थे। एक माह की छुट्टी पूरी करने के बाद ही फरवरी में यूनिट लौट गए थे। इससे पहले वह महाकाली मंदिर में सेना की ओर से किए गए धर्मशाला के निर्माण के दौरान भी आए थे।