(उत्तराखंड छात्र संगठन की नेत्री भारती पांडे की कलम से)
अजीब बात है एक तरफ़ तो पूरे देश में 54 दिन के लॉकडाउन की घोषणा सरकार ने की है और इस लॉकडाउन की मांग राज्य सरकारों ने ख़ुद ही की थी मगर दूसरी तरफ़ ही देश में शराब की दुकानें खोलने के फ़ैसले से सा़फ तौर पर केंद्र और राज्य सरकारों का असली चेहरा सामने आ चुका है।
एक तरफ़ पूरे देश में आम नागरिक Corona Virus की वजह से लागू किए गए लॉकडाउन के कारण भूखों मर रहें हैं। देश में ऐसी कोई व्यवस्था नहीं है जिससे मज़दूर, किसान और मध्यम वर्गीय निश्चिंत हो सकें। लेकिन सरकार ज़रूरी मुद्दों को छोड़कर शराब की दुकानों पर छूट दे चुकी है।
महामारी के चलते देश के ज़िलों को तीन ज़ोन में बांटा गया है – रेड ज़ोन (अतिसंवेदनशील) ऑरेंज ज़ोन (संवेदनशील) और ग्रीन ज़ोन (सुरक्षित)। रेड ज़ोन में लोगों को वैसे कोई छूट नहीं दी गई है परन्तु शराब की दुकान खोलने के फ़ैसले को लेकर सरकार से सवाल पूछना बेहद ज़रूरी हो गया है।
सवाल यह भी है कि क्या ऐसे समय में जब पूरा देश वैश्विक महामरी से जूझ रहा है तब शराब, पान और गुटखा की दुकानें खोलना कहां तक उचित है?
हां बेशक़ इस विश्वगुरु कहे जाने वाले देश की अर्थव्यवस्था शराब (आबकारी) पर निर्भर करती है। लेकिन अभी इस दौर में जब लोगों को नशे की नहीं खाद्य सुरक्षा, स्वास्थ्य सुरक्षा और आर्थिक सुरक्षा, क्वारंटीन सेंटर्स, पी पी ई किट और टेस्टिंग प्रोसेस में इज़ाफ़ा करने की ज़रूरत है।
जब आरबीआई के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन ने भी कहा कि देश की अर्थव्यवस्था को खोलने के लिए इस महामारी के दौर में प्रतिदिन कम- से- कम 5 लाख कोरोना टेस्ट होने चाहिए तब यह आदर्शवादी कही जाने वाली सरकार भी जनता को नशे परोसना चाह रही है।
वैसे हम सभी शराब से आए दिन हो रही घटनाओं से वाक़िफ तो हैं ही। युवाओं के भविष्य के साथ खिलवाड़ करने वाले नशे में से एक शराब है। आए दिन महिलाओं की मौत घरेलू हिंसा से होती है जिसका एक कारण शराब भी है और आम इंसान के आर्थिक पतन के लिए भी यह शराब ही ज़िम्मेदार है।
इस देश में घर हर किसी के लिए सुरक्षित जगह नहीं है। अभी अंदाज़ा भी नहीं लगाया जा सकता कि इस लॉकडाउन के दौरान कितनी महिलाएं घरेलू हिंसा या शोषण का शिकार हो रही हैं क्योंकि दलाल मीडिया को सरकार की चापलूसी से फ़ुरसत नहीं मिलती।
और अब ऐसे में सरकार का नशे पर छूट देना साबित करता है कि यह सरकार सिर्फ़ पूंजीपतियों की जेब ही भरना चाहती है चाहे उसके लिए जनता को शराब रूपी ज़हर ही क्यों ना परोस दिया जाए और निश्चित ही इस दौरान शराब के ठेकेदार और उनके आका यानी कि सत्ता में मौजूद नेता आदि अवश्य ही भारी मुनाफ़ा कमाने की चाह में कालाबाजा़री पर उतर आएंगे और ये ज़हर आम इंसान की जेब खाली कर इनकी जेब भरेगा।
वैसे यह बात पूरी तरह साफ़ है कि यह सरकार महिलाओं, मज़दूरों और आम नागरिकों को लेकर बिल्कुल भी संवेदनशील नहीं है।
ख़ैर! जब सत्ता और व्यवस्था में विक्षिप्त लोग हों और पूरा तंत्र ही प्रदूषित हो तब कुछ अच्छी आशा की नहीं जा सकती…..