हल्द्वानी (नेटवर्क 10 संवाददाता)। वो पूरे 44 साल बाद उत्तराखंड लौटी है। वो पहाड़ी है, पहाड़ों में ही रहती है। लेकिन आखिर ऐसा क्या था कि वो 44 साल तक उत्तराखंड नहीं लौटी।
जिसकी बात हम कर रहे हैं वो एक परिंदा है। जी हां, वो पूरे 44 साल बाद उत्जंतराखंड़ प्रवास पर आया है, लेकिन इस बार उसने यहां भी अपना ठिकाना बदला है। हम बात कर रहे हैं पहाड़ी बया की। बया नाम का ये पक्षी असम में पाया जाता है। कभी हर साल ये प्रवास पर उत्तराखंड आता था। इस बार ये लौटा है पहाड़ के तराई इलाके में।
बताया गया है कि 1976 में यह कालाढूंगी के जंगलों में नजर आया था। इस बार इस पक्षी ने तराई केंद्रीय वन प्रभाग के रुद्रपुर से सटे जंगल में अपना डेरा जमाया है। फॉरेस्ट के मुताबिक पहाड़ी बया को काफी दुर्लभ प्रजाति है। विश्व में इस चिडिय़ा की संख्या एक हजार करीब है। अंग्रेजी में इसे फिन्न वीवर कहा जाता है। यह नाम कांग्रेस के संस्थापक रहे एओ हृयूम ने दिया था। उनके द्वारा ही इस चिडिय़ा को खोजा गया।
भारत में बया की चार प्रजातियां मिलती हैं। बया वीवर (देशी बया), स्ट्रीक्ड वीवर (जालीदार बया), ब्लै ब्रेस्टेड वीवर (मोमिया चोच बया) और फिन्न वीवर (पहाड़ी बया)। इसमें पहाड़ी बया का वासस्थल तराई का जंगल व असम का काजीरंगा नेशनल पार्क ही माना जाता है। लेकिन, 1976 के बाद से दोबारा उत्तराखंड में नजर नहीं आने से पक्षी विशेषज्ञ व महकमा भी चिंतित था।
23 जून को पहाड़ी बया तराई केंद्रीय के जंगल में एक बर्ड वाचर को नजर आई। इजंगल में पहाड़ी बया के बीस घोंसले भी मिले। इसके अलावा पचास अलग-अलग तरह के पक्षी भी आसपास के इलाके में दिखे। जिसके बाद डीएफओ ने वनकर्मियों को घोंसलों के आसपास गश्त के साथ निगरानी के निर्देश भी दिए।
आपको बता दें कि दुनिया भर में पहाड़ी बया केवल भारत और एक-दो जगहों पर नेपाल में पाई जाती है। उत्तर भारत में पिछले 15 सालों में पहाड़ी बया की जनसंख्या में 84.1 से 95.8 फीसद की गिरावट आई है। साल 2001 में बर्ड लाइफ इंटरनेशनल ने 1866 से 2000 तक के उपलब्ध आंकड़ों के आधार पर देश में पहाड़ी बया के 17 लोकेशन बताए थे। बर्ड लाइफ इंटरनेशनल की स्टडी में देश में पहाड़ी बया के 47 लोकेशन मिले। इनमें से साल 2012 से 2017 के दौरान हुए पांच सर्वे में अब केवल नौ जगहों पर ही पहाड़ी बया मिले थे।