(लेखक वरिष्ठ पत्रकार रमेश भट्ट मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के मीडिया सलाहकार हैं)
सादर नमस्कार!
मेरा प्रयास रहता है कि मैं हर उत्तराखंडी को ये भरोसा दिला सकूं कि हम राज्य में रहकर भी बहुत कुछ कर सकते हैं।
90 के दशक में भीमताल में फूलों की खेती ने लोगों को नई दिशा दिखाई थी, फूलों से अच्छा खासा रोजगार लोगों को मिला। भीमताल की महाशीर के बारे में देश-दुनिया में कौन नहीं जानता।
मैंने बचपन में अपने पिता से सुना था, अंग्रेजो के समय में लंदन में आयोजित होने वाली टी एक्जीबिशन में बेरीनाग की चाय, टी क्वीन का खिताब जीतती रही।
आज जब बड़े पैमाने पर प्रवासी भाई बहन घर लौटे हैं, तो एक नया विश्वास पैदा हो रहा है। जैसा कि हमारे मुख्यमंत्री जी का कहना है, “आवा अपणु गौं का वास्ता कुछ करा”। तो ये सही समय भी है, और सरकार ने मौका भी दिया है। माननीय मुख्यमंत्री जी ने मुख्यमंत्री स्वरोजगार योजना शुरू की है जिसमें स्वरोजगार के लिए भारी सब्सिडी मिल रही है। इसी तरह प्रधानमंत्री रोजगार सृजन कार्यक्रम के जरिये भी स्वरोजगार के लिए ऋण मिलता है। नाबार्ड, राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन के तहत भी स्वरोजगार शुरू करने के लिए उचित दरों व सब्सिडी के साथ लोन की सुविधा है।
हमारा उत्तराखण्ड विविधताओं से भरा है। उत्तराखंड में प्रकृति ने सभी ऋतुयें और सभी तरह की भौगोलिक परिस्थिति प्रदान की है। इस लिहाज से “वोकल फॉर लोकल” से आत्मनिर्भर बनने के लिए यह उचित समय भी है और मौका भी है।
प्रदेश के हर जिले और हर घाटी की अपनी विशिष्ट भौगोलिक स्थिति और जलवायु है। पर्वतीय क्षेत्रों में साग- भाजी का उत्पादन है, तो कहीं फलों का, कहीं फूलों का और कहीं अनाज का। उत्तरकाशी जिला जहां फल और सब्जी पट्टी के लिए विख्यात है, वहां की राजमा अपने विशिष्ट स्वाद के लिए पहचानी जाती है। उसी तरह हमारे पर्वतीय जिलों में नींबू, नारंगी, माल्टा, खुमानी, आलू बुखारा, नाशपाती, काफल आदि का भरपूर उत्पादन होता है। गढ़वाल कुमाऊं के पर्वतीय क्षेत्रों में मंडवा, झंगोरा, जौ, गहत, भट्ट, मसूर, तोर और रामदाना ( स्थानीय भाषा मे चुआ) का भरपूर उत्पादन होता है।
हम चाहें तो अपने बुरांस के जूस को प्रमोट करके कोला पेप्सी के टक्कर का बना सकते हैं। हम चाहें तो काफल को चेरी के जैसी मार्केट दे सकते हैं। हमारे सीमांत जिलों में बड़ी मात्रा में भेड़-बकरी पालन होता है। उनकी ऊन से पीढ़ियों से लोग कालीन निर्माण में प्रयोग होती है।
बागेश्वर को तो ताम्र नगरी ही कहा जाता है। जहां तांबे से बर्तन, वाद्य यंत्र आदि अनेक उपयोगी वस्तुएं बनती हैं, चंपावत में लौह से बनी वस्तुओं का प्रचलन है।रिंगाल, कंडाली, भीमल, भांग के रेशे पहाड़ में हर जगह व्याप्त हैं जिनसे अच्छी खासी इंडस्ट्री खड़ी हो सकती है।
रानीखेत का चौबटिया गार्डन सेव के लिए और सेब की प्रजातियों पर शोध के लिए प्रसिद्ध है। रानीखेत के निकट की गगास घाटी साग सब्जी के क्षेत्र में सबके लिए प्रेरणा है।
हमारा गैरसैण और नौटी का क्षेत्र तथा कुमाऊँ में चौकोड़ी में शानदार चाय के बागान हैं।
हमारे तराई के जिले गेहूं , चावल , गन्ना सब्जियां भरपूर मात्रा में उत्पन्न करते हैं।
हमारे उच्च हिमालयी क्षेत्र में जड़ी बूटी उत्पादन की प्रबल सम्भावनाएं हैं। कुटकी, अतीश, जटामाशी, हरड़, बहेड़ा, आंवला का उत्पादन फार्मा कंपनियों की जरूरत है।
इस तरह हमारा हर गांव, हर क्षेत्र, हर जिला एक विशेषता लिए है। अब जरूरत है, हमें उन विशेषताओं को अर्थव्यव्स्था से जोड़ने की, स्वरोजगार अपनाने की।
मुझे विश्वास है, हमारा उत्तराखण्ड स्वरोजगार के रास्ते आत्मनिर्भर जरूर बनेगा।