देहरादून (नेटवर्क 10 टीवी ब्यूरो)। उत्तराखंड के मुख्यमंत्री इन दिनों फुल फॉर्म में हैं। वे कड़े एक्शन ले रहे हैं। गहरी नींद में सोए हुए अफसरों को जगाने के लिए सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत ने जैसे हंटर हाथ में उठा लिया है। उनका कड़क अंदाज बता रहा है कि वे इस वक्त किसी हाल में अफसरों के नाकारेपन को बर्दाश्त नहीं करेंगे।
ये बातें मुख्यमंत्री द्वारा समय समय पर ली जाने वाली तमाम बैठकों में देखने को मिल रही हैं। यहां मैं हाल ही में हुई एक समीक्षा बैठक का जिक्र करना चाहूंगा। प्रदेश में लोगों को बांटे जाने वाले राशन के मामले में जब मुख्यमंत्री ने वीडियो कांफ्रेंसिंग से जिलों के तमाम अधिकारियों के साथ समीक्षा बैठक की तो उसमें कड़क अंदाज में निर्देश दिए कि किसी भी हाल में राशन की कालाबाजारी की खबर उनके कान तक नहीं पहुंचनी चाहिए। अगर ऐसा होता है तो मुझे दोषी अफसर या डीलर सलाखों के पीछे दिखना चाहिए। ये एक उदाहरण भर है। कड़े अंदाज में ऐसे निर्देश मुख्यमंत्री लगातार अधिकारियों को दे रहे हैं।
दरअसल आम जनता इन बातों से अनभिज्ञ होती है। आम लोग सिर्फ सरकार या मुख्यमंत्री की घोषणाओं और उन पर होने वाले काम से ही सरकार का आकलन करते हैं। यहां इसलिए ये बताना भी आवश्यक है कि मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत खुद द्वारा की गई घोषणाओं को लेकर भी समय समय पर समीक्षा बैठकें करते हैं। दो दिन पहले ही एक बैठक में उन्होंने तमाम अफसरान को आदेशित किया कि जो जो घोषणाएं की गई हैं उन पर शत प्रतिशत कार्य तो संपादित किया ही जाए, सारे कार्यों को समय पर भी पूरा करना आवश्यक है। यहां ये भी बताना लाजमी है कि इस वक्त मुख्यमंत्री द्वारा की गई करीब 70 फीसदी घोषणाओं पर तेजी से काम चल रहा है और बाकी 30 प्रतिशत को जल्द से जल्द पूरा करने के मुख्यमंत्री ने कड़े निर्देश दिए हैं।
ये तो हुई घोषणाओं की बातें, यहां अफसरों की नकेल कसने की बात सबसे अहम है। दरअसल पब्लिक को ये पता नहीं होता कि मुख्यमंत्री प्रदेश को आखिर किस तरीके से चला रहे हैं। यहां पब्लिक को ये बताना आवश्यक है कि सरकार नीति नियंता की तरह ही काम करती है और उसकी नीतियों और उनके अनुसार काम करने की जिम्मेदारी कार्यपालिका यानि तमाम विभागों के अफसरों और कर्मचारियों की होती है। अफसरों के नाकारेपन की वजह से ही आम जनता के बीच सरकार की छवि बनती और बिगड़ती है।
मुख्यमंत्री का फोकस इस वक्त अफसरों की कार्यशैली पर ज्यादा है। तमाम तरह की शिकायतें मुख्यमंत्री को मिलती रहती हैं। सभी जानते हैं कि मुख्यमंत्री ने न्यू मीडिया के मार्फत अपने द्वार प्रदेश की जनता के लिए खोल रखे हैं। शिकायतों के लिए तमाम तरह के मंच जनता को उपलब्ध कराए गए हैं। इसमें कुछ टोल फ्री नंबर, व़ट्स ऐप और तमाम तरह के हेल्पलाइन नंबर हैं तो कुछ वेबसाइटें जनता को अपनी बात रखने के लिए दी गई हैं।
मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने हाल ही में शासन स्तर के बड़े अधिकारियों को इधर से उधर कर दिया। इसमें तमाम वो अफसर शामिल हैं जिनकी कार्यशैली दागदार रही है। मुख्यमंत्री ने ऐसे अफसरों के पर कतर डाले। दूसरे अफसरों को उनकी जगह जिम्मेदारी दी। इससे शासन का काम कहीं हद तक सुधरता दिख रहा है। प्रदेश के मीडिया में भी इसकी तारीफ हो रही है।
इधर एक और बात है जो सिर्फ मीडिया को पता है लेकिन आम जनता को इसके बारे में कुछ भी नहीं मालूम। मीडियाकर्मियों की जमात में इसको लेकर चर्चाएं भी होती रहती हैं। ये है शासन के अफसरों के कामकाज को लेकर। इन दिनों तमाम महत्वपूर्ण विभाग ज्यादातर उत्तराखंड मूल के रहने वाले अफसरों के हाथों में दिए गए हैं। इसके पीछे सरकार की मंशा कार्य को सुधारने और गुणवत्तापूर्ण परिणाम पाने की है। दरअसल उत्तराखंड मूल के रहने वाले जो भी आईएएस अधिकारी शासन में तैनात हैं वे राज्य की भौगौलिक परिस्थियों से अच्छी तरह वाकिफ हैं और यहां की समस्याओं की मूल वजहों को भी जानते हैं। इसलिए अगर इन अधिकारियों के हाथ में पावर दी गई है तो निश्चित ही ये प्रदेश और प्रदेश की जनता के लिए बहुत ही ज्यादा फायदे का फैसला है।
कोरोनाकाल में कोरोना की बात न किया जाना लोगों को जरूर खलेगा। इसलिए यहां सबसे पहले ये बात आम लोगों को बताना चाहूंगा कि सरकार ने जब शासन में बड़े स्तर पर अफसरों की जिम्मेदारी में फेरबदल किया तो इस कड़ी में उस अफसर को भी बदला गया जो कोरोनाकाल में कोविड-19 की व्यवस्थाएं देखने के लिए नोडल अधिकारी बनाया गया था। तेजतर्रार अधिकारी के हाथों कमान देकर मुख्यमंत्री ने ये संदेश दिया कि वे कोविडकाल में बेहद एक्टिव हैं। देश में उत्तराखंड इकलौता प्रदेश है जिसने खुले तौर पर अब तक दूसरे प्रदेशों से आने वाले लोगों के लिए द्वार नहीं खोले हैं। उत्तराखंड सरकार लगातार अहतियात बरत रही है और इसीलिए ऐसा किया गया है। प्रदेश में बाहर से आने वाले हर व्यक्ति को पास के माध्यम से ही प्रवेश मिल रहा है यानि प्रदेश में आने वाले हर व्यक्ति की निगरानी की जा रही है। जबकि पूरे देश में पास व्यवस्था को खत्म कर आवाजाही सामान्य कर दी गई है ऐसे में उत्तराखंड सरकार का ये फैसला उसके कोरोना के प्रति संवेदनशीलता को दर्शाता है। यहां तक कि प्रदेश के भीतर एक जिले से दूसरे जिले में आवागमन के लिए भी पंजीकरण जरूरी किया गया है ताकि सारा रिकॉर्ड रहे। ये आम आदमी की सुरक्षा के लिए उठाए गए बड़े कदम हैं।
सबसे बड़ी बात ये है कि इन तमाम बड़े फैसलों के बीच मुख्यमंत्री ने आम जन की व्यक्तिगत भावनाओं तक का भी ख्याल रखा। तमाम समाजसेवी, राजनीतिक संगठनों और बुद्धिजीवियों की राय के अनुसार फैसले लिए, भले ही फिर उन्हीं लोगों ने मुख्यमंत्री के तरह तरह के उपनाम रख दिए हों। यहां उन समाजसेवियों, बुद्धिजीवियों और संगठनों के संचालकों को ये जरूर ध्यान रखना चाहिए अपने फैसलों को समय और हालात के हिसाब से बदलने और सुधारने की कुव्वत हर किसी में नहीं होती।
यहां मैं ये भी जरूर बताना चाहूंगा कि कोविडकाल में देश की तमाम प्रदेश सरकारों की खामियां सामने आई हैं। ऐसा कोई प्रदेश नहीं है जहां कोरोनाकाल में शत प्रतिशत काम लोगों के मुताबिक और दुरुस्त रहा हो। ऐसे महायुद्ध के काल में ऐसी खामियां सामने आना लाजमी था, लेकिन दूसरे प्रदेशों के मुकाबले उत्तराखंड के हालात कई गुना अच्छे रहे हैं और अच्छे हैं। यह सब सरकार की तत्परता से निर्णय लेने (चाहे फैसले वक्त वक्त पर बदलने पड़े हों) की क्षमता का ही परिणाम है।