उत्तराखंड: …जब पत्रकारों ने की कोशिश, आखिर दो दिन की बच्ची को पहुंचाया उसके गांव

(वरिष्ठ पत्रकार गुणानंद जखमोला की कलम से)

– एसटीएच से अपने घर रवाना हुई खुशी
– डायरेक्टर एनएचएम डा. अंजलि नौटियाल का  जताया आभार
– थैंक्स, पत्रकार साथी इशिता, मदन मेहरा, अवधेश नौटियाल और धनंजय

जब आप यह पोस्ट पढ़ रहे होंगे तो दो दिन पहले जन्मी नैनीडांडा की खुशी अपने ढंगाल गांव पहुंच चुकी होगी। खुशी ( ये तत्कालिक नाम मैंने दिया है) का जन्म हल्द्वानी के एचटीएच में हुआ। लाकडाउन के कारण डब्बू और उसकी पत्नी अर्चना के सामने ये मुश्किल थी कि वापस गांव कैंसे पहुंचे? इस पहेली के हल के लिए पत्रकारों की एक बड़ी टीम लगी। डब्बू एक बेहद साधारण युवक है और गांव में ही रहकर मजदूरी और खेती कर गुजर-बसर कर रहा है। इसकी मदद को सबसे पहले समाजसेवी रघुवीर बिष्ट आए। उन्होंने डब्बू को आर्थिक मदद पहुंचाई ताकि वो दोनों पति-पत्नी हल्द्वानी में दवाएं और खाना खा सके।

मैंने कल 108 सेवा के प्रभारी अनिल शर्मा से बात की। अनिल ने हाथ खडे़ कर दिये। सुबह मैंने नैनीताल की सीएमओ डा. भारती नौटियाल से बात की तो उन्होंने कहा कि एसटीएच उनके अंडर में नहंी है। वहीं बात करो। एसटीएच में बात करना मुश्किल था। मैंने सोचा और एक पोस्ट लिख दी कि आखिर खुशियों की संवारी हैं कहां? बस, हमारे पत्रकार साथी एक्टिव हो गये।

मेरे सहयोगी पत्रकार साथी अवधेश नौटियाल ने अपने स्तर पर सवाल उठाए कि डब्बू की खुशी को आखिर उसके घर तक कौन ले जाएगा? टाइम्स आफ इंडिया की इशिता का फोन आया। उसने इस मामले में रुचि ली। डीजी हेल्थ के बयान के बारे में बताया। न्यूज नेशन के साथी धनंजय ढौंडियाल ने मामले को आगे बढ़ाया। इस पर एनएचएम की डायरेक्टर डा. अंजलि नौटियाल ने संज्ञान लिया। बस, फिर क्या था, नैनीताल की सीएमओ के सुर बदल गये। सुबह जो कह रही थी कि वो अस्पताल मेरे अंडर में नहीं है। उसी सीएमओ आफिस से मदन मेहरा जी का फोन आया कि हम डब्बू की नवजात बेटी और प्रसूता को घर भिजवाने की व्यवस्था कर रहे हैं।

इस बीच डब्बू की पत्नी और बेटी को अस्पताल के डाक्टरों ने डिस्चार्ज भी कर दिया था। कितनी अजीब बात है कि डब्बू के पास घर जाने की कोई व्यवस्था नहीं, लाॅकडाउन है और अस्पताल के डाक्टरों ने उसे डिस्चार्ज कर दिया। यह कैसे मानवता है? कोविड-19 के मरीजों के बीच में दो पूर्व जन्मा बच्चा और प्रसूता अस्पताल के लाॅन में बैठी घर जाने का इंतजार कर रही और डब्बू प्राइवेट एम्बुलेंस वालों के आगे रेट को लेकर गिड़गिड़ाता। मैंने दोबारा मेहरा जी को फोन किया। उन्होंने तत्परता दिखाई और डब्बू की बेटी खुशी के लिए एम्बुलेंस की व्यवस्था कर दी। आखिर डब्बू की खुशियों की सवारी की पहेली सुलझ ही गई।

इस बीच मुझे दिल्ली, हल्द्वानी, देहरादून से कई लोगों ने डब्बू की मदद के लिए फोन किया और आर्थिक सहयोग की बात भी कही, उनका भी आभार। क्योंकि आर्थिक मदद के सवाल से अधिक बड़ा सवाल यह था कि आखिर सरकार जो खुशियों की सवारी के नाम पर 90 एम्बुलेंस लेकर आई थीं, वो हैं कहां?

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