सरकार ने बहुत बड़ा दांव खेला है, असल परीक्षा तो अब है…

(वरिष्ठ पत्रकार प्रभात डबराल की कलम से)

कोरोना पीड़ितों की बढ़ती संख्या के बावजूद सरकार ने लॉकडाउन में इतनी ढील का दांव खेला है ….बाकी ज़्यादातर देशों ने लॉकडाउन तब खोलना शुरू किया जब पीड़ितों का आंकड़ा बढ़ना थम गया था…हमारे पास इसके अलावा कोई और चारा भी नहीं था…

इसलिए जून का महीना महत्वपूर्ण है, बहुत महत्वपूर्ण…

एक राष्ट्र के रूप में और एक ज़िम्मेदार नागरिक के रूप में ये हम सब के लिए परीक्षा की घड़ी भी है…

इसी महीने के आखिर में पता चलेगा कि लॉकडाउन ने हमारी पहले से ही लगातार गिर रही अर्थव्यवस्था को और कितनी गहरी खाई में धकेल दिया है…

ध्यान रखिये कि जून में ख़त्म हो रही तिमाही कोविड के असर वाली पहली तिमाही होगी….

इस साल की पहली तिमाही में ही हमारी जीडीपी गिरते गिरते ४.२ पर आ गयी थी, इसमें लॉकडाउन के सिर्फ सात दिन गिने गए थे…

जीडीपी का ४.२ पर आ जाना ही अपने आप में बड़ी तबाही का सूचक है, पर इसमें कोविड का कोई हाथ नहीं था …ये तबाही आर्थिक बदइंतज़ामी का नतीजा थी….

लेकिन जून वाली तिमाही में तो दो महीने लॉकडाउन वाले भी गिने जाएंगे.. इसलिए जीडीपी और ज़ोर से गिरेगी..

याद कीजिये जब लॉकडाउन शुरू हुआ था कई अर्थशास्त्रियों ने कहा था कि अगर अर्थव्यवस्था सही तरीके से संभाली गयी, नोटबंदी के दौरान छोटे बाज़ारों से सोख लिया गया पैसा वापस बाजार में डाला गया तो भारत बाकी उन्नत देशों की तरह शून्य या उससे नीचे की जीडीपी वाला देश नहीं बनेगा …हम बेहतर स्थिति में हैं..

गाँवों कस्बों के लोगों के पास मौजूद छोटी मोटी बचत हमारी अर्थव्यवस्था का वो कुशन रही है जो हर वैश्विक आर्थिक आपदा में हमारी रक्षा करती रही है…नोटबंदी ये बचत खा गयी, लेकिन इस भयंकर गलती की भरपाई का हमारे पास समय भी है और सामर्थ्य भी.

आपको याद होगा राहुल गांधी से बातचीत में अर्थशास्त्री रघुराम राजन ने कहा था कि गांवों कस्बों के गरीब लोगों को भुखमरी वाली स्थिति से उबारने यानी, उन्हें बाजार से छोटी मोटी खरीददारी करने लायक बनाने में ६५००० करोड़ रुपये लगेंगे…ये बड़ी रकम नहीं है.

अगर सरकार मनरेगा और दूसरी ऐसी नई पुरानी योजनाओं के जरिये ग्रामीण अर्थव्यवस्था में जान फूंके और छोटे व्यापारियों/ उद्योगों का खड़ा होने में मदद करे तो आर्थिक सर्वनाश से बचा जा सकता है. सरकार अगर अपनी प्राथमिकताएं सही रखे और अम्बानी/अडानी के तिलिस्म से बाहर निकल सके तो अभी भी ये संभव है.

इसलिए:
ध्यान रखिये कि हमने कोरोना के साथ साथ चलते हुए उससे दूरी बनाकर उसे निष्प्रभावी करने का निर्णय लिया है. ये सही रणनीति है.

इसी बिंदु पर, एक ज़िम्मेदार नागरिक के रूप आपकी हमारी परीक्षा होनी है. अगर हम कोरोना से खुद को बचाने की ज़िम्मेदारी अपने हाथ में ले लें तो सरकार को अर्थव्यवस्था पर ध्यान केंद्रित करने में आसानी होगी…

इस रणनीति में सबसे महत्वपूर्ण है बूढ़ों और बीमारों की देखभाल

बूढ़ों और बीमारों को कोरोना से दूर सुरक्षित स्थानों पर रखना है. युवाओं को भी वो सभी कदम उठाने हैं जो सरकारें तज़बीज़ कर रही हैं.

अपने घर और अपने समुदाय के बूढ़ों/ बीमारों की सुरक्षा और देखभाल की ज़िम्मेदारी भी युवाओं को ही उठानी होगी.

ये काम सिर्फ सरकारी अमले पर नहीं छोड़ा जा सकता. पिछले दो महीने से सरकारी अमला यही सब करते करते थक गया होगा ….हमें उनकी मुश्किलें नहीं बढ़ानी, उनका हाथ बंटाना है…

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