देहरादून: भू कानून को लेकर बीते कुछ महीनों से प्रदेश के लोगों ने अपनी आवाज को काफी बुलंद किया है। जिसके बाद मुख्यमंत्री धामी ने अपने दूसरे कार्यकाल के शुरू में ही इसे लागू करने की दिशा में कदम उठाया था। एक उच्च स्तरीय समिति का गठन किया गया था। उत्तराखंड में सख्त भू-कानून को लेकर प्रदेश सरकार तेजी से काम कर रही है। भू-कानून पर पूर्व मुख्य सचिव सुभाष कुमार की अध्यक्षता में गठित समिति इस माह के अंतिम हफ्ते में अंतरिम रिपोर्ट सरकार को सौंपेगी। समिति अंतरिम रिपोर्ट तैयार कर रही है। इसे अंतिम रूप देने से पहले 23 जून को समिति की एक और बैठक होगी। इसमें समिति के सदस्य वर्तमान भू-कानून में संशोधन से संबंधित सुझाव रखेंगे। सभी सदस्यों को हिमाचल में लागू भू-कानून का अध्ययन कर सुझाव देने को कहा गया है।
भू-कानून के परीक्षण और अध्ययन को गठित उच्च स्तरीय समिति भूमि के उपयोग की व्यवस्था को सख्त बनाने पर भी मंथन कर रही है। वर्ष 2003 के बाद प्रदेश में भू-उपयोग में दी गई छूट का सही उपयोग नहीं होने की जिलों की रिपोर्ट के बाद समिति का ध्यान इस बिंदु पर गया है। समिति वर्तमान भू-कानून में संशोधन के साथ ही इसकी नियमावली बनाने की संस्तुति सरकार से कर सकती है।
समिति हिमाचल की तर्ज पर भू-कानून के साथ नियमावली बनाने की आवश्यकता पर विचार कर रही है। भू-कानून के प्रविधानों के बारे में नियमावली में विस्तार से जानकारी दी जा सकेगी। भू-कानून के उपयोग को लेकर कई बार अलग-अलग मत और व्याख्या की जा रही है। नियमावली नहीं होने से भू-कानून को सख्ती से अमल करने में भी बाधा उत्पन्न हो रही है। समिति ने इसे महसूस किया है। दरअसल, प्रदेश के दोनों मंडलों में जिलों से प्राप्त रिपोर्ट में भू-कानून में उद्योगों, शिक्षण संस्थाओं समेत विभिन्न उद्देश्यों के लिए दी गई भूमि के दुरुपयोग की बात सामने आई है।
औद्योगिक, शैक्षिक, ऊर्जा, उद्यानिकी, कृषि समेत विभिन्न प्रयोजनों के लिए भूमि का अवैध रूप से आवासीय प्लाटिंग एवं अन्य उद्देश्यों के लिए उपयोग किए जाने के तथ्य सामने आए हैं। समिति अध्यक्ष सुभाष कुमार ने बताया कि भू-कानून को नियमावली के माध्यम से और स्पष्ट किया जाना चाहिए। इससे भू-कानून के प्रविधानों के दुरुपयोग को भी रोका जा सकता है। समिति के समक्ष यह बिंदु भी विचारार्थ है। समिति अपनी अंतरिम रिपोर्ट तमाम बिंदुओं को ध्यान में रखकर तैयार करेगी।