देवीधुरा (नेटवर्क 10 संवाददाता)। उत्तराखंड के देवीधुरा में राखी के त्यौहार पर हर साल आयोजित होने वाला बग्वाल मेला इस बार भी हुआ लेकिन सिर्फ प्रतीकात्मक तरीके से। इस साल कोविड नियमों का पालन करते हुए बग्वाल मेला आयोजित किया गया। कोविड को देखते हुए इस बार दोनों मोर्चों पर केवल 21-21 लोग ही शामिल हो सके। आपको बता दें कि ये मेला देवीधुरा के मां बराही देवी मंदिर के प्रांगण में आयोजित होता है।
हर साल रक्षा बंधन के दिन कुमाऊं का प्रसिद्ध बग्वाल खेला जाता है। जिसमें चार खाम और सात थोक के प्रतिनिधि हिस्सा लेते हैं। बग्वाल का आशय पत्थर युद्ध से है। छह साल पूर्व तक यहां चार खामों के योद्धाओं के बीच पत्थर युद्ध होता था। पत्थरों की मार से घायल लोगों का रक्त एक व्यक्ति के बराबर बह जो के बाद मंदिर के पुजारी शंखनाद कर युद्ध रोक देते थे। हाईकोर्ट के आदेश के बाद अब यहां पत्थर युद्ध के बजाय फल और फूलों से बग्वाल खेली जाती है। हालांकि परंपरा को कायम रखने के लिए योद्धा अभी भी फल और फूलों के साथ सांकेतिक रूप से एक दूसरे पर पत्थर फेंकते हैं।
मान्यताओं के अनुसार पौराणिक काल में चार खामों के लोगों द्बारा अपनी आराध्या बाराही देवी को मनाने के लिए नर बलि देने की प्रथा थी। मा बाराही को प्रसन्न करने के लिए चारों खामों के लोगों में से हर साल एक नर बलि दी जाती थी। बताया जाता है कि एक साल चमियाल खाम की एक वृद्धा परिवार की नर बलि की बारी थी। परिवार में वृद्धा और उसका पौत्र ही जीवित थे। माना जाता है कि महिला ने अपने पौत्र की रक्षा के लिए मा बाराही की स्तुति की। मा बाराही ने वृद्धा को दर्शन दिए। कहा जाता है कि देवी ने वृद्धा को मंदिर परिसर में चार खामों के बीच बग्वाल खेलने के निर्देश दिए। तब से बग्वाल की प्रथा शुरू हुई।