देहरादून (नेटवर्क 10 संवाददाता)। प्रोफेसर नन्द किशोर जोशी को कुमाऊं विश्विद्यालय का कुलपति नियुक्त करने पर सवाल उठने लगे हैं। इस नियुक्ति को नियम विरुद्ध बताते हुए कुछ लोग इसे कोर्ट में चुनौती देने की तैयारी में हैं।
बीते 8 मई को प्रोफेसर नंदकिशोर (एमके) जोशी की कुमाऊं विश्वविद्यालय के कुलपति पद पर नियमित नियुक्त की गई है। वह इससे पहले उत्तरांचल यूनिवर्सिटी (निजी विश्वविद्यालय) देहरादून के कुलपति के पद पर कार्यरत रहे। लेकिन प्रोफेसर जोशी की नियुक्ति को लेकर विवाद शुरू होने लगा है। उनकी अहर्ता और अनुभव को लेकर प्रश्न चिन्ह लगाए जा रहे हैं।
कहा जा रहा है कि प्रोफेसर नंदकिशोर ने अपनी अधिकांश सेवाएं निजी संस्थानों (विश्वविद्यालयों) में दी हैं। वह कभी भी किसी सरकारी विश्वविद्यालय में सेवारत नहीं रहे। इधर, विश्वविद्यालय अनुदान आयोग ने कुलपति पद के लिये आवश्यक योग्यता कम से कम 10 वर्ष प्रोफेसर पद पर नियत वेतनमान 10000 ग्रेड में कार्य करने का अनुभव अनिवार्य है। लेकिन प्रोफेसर नन्द किशोर जोशी निजी संस्थानों या विश्विद्यालयों में ही सेवारत रहे जहां नियत वेतनमान में नियुक्ति होती ही नहीं है।
कहा जा रहा है कि जोशी ने इस सम्बंध में जो भी प्रमाण पत्र अपने आवेदन के साथ लगाए हैं वह मिथ्या हैं। इसी को आधार बनाकर कुछ लोग हाईकोर्ट में वाद दायर करने की तैयारी कर रहे हैं। यदि कोर्ट ने उनकी नियुक्ति निरस्त की तो इसका प्रदेश के विश्वविद्यालयों की प्रतिष्ठा और कामकाज पर प्रभाव पड़ेगा।
दून यूनिवर्सिटी के कुलपति हो चुके हैं बर्खास्त
इससे पहले इसी तरह के एक मामले में दून विश्विविद्यालय के पूर्व कुलपति प्रोफेसर चन्द्रशेखर नौटियाल की नियुक्ति भी हाईकोर्ट नैनीताल ने निरस्त की थी। उनकी नियुक्ति भी यूजीसी के मानकों के आधार पर नहीं की गई थी।
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‘कुलपति की नियुक्ति राजभवन से की जाती है। यदि प्रोफेसर जोशी की नियुक्ति को लेकर कोई विवाद है अथवा नियमों का उल्लंघन हुआ है तो शिकायत मिलने पर मामले की जांच की जायेगी’।
_ डा. धन सिंह रावत, उच्च शिक्षा राज्य मंत्री, उत्तराखण्ड।
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‘मेरी नियुक्ति नियमानुसार हुई है। मैं यूजीसी के सभी मानक पूरे करता हूं और मैंने अपने आवेदन में अहर्ता को लेकर कोई भी मिथ्या प्रमाण पत्र नहीं लगाया है’।
_ प्रोफेसर नन्दकिशोर जोशी, नवनियुक्त कुलपति, कुमाऊं विश्विविद्यालय।
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