(वरिष्ठ पत्रकार दीपक फर्स्वाण की कलम से)
त्रिवेन्द्र सरकार का एक और फैसला चर्चाओं में है। लॉकडाउन के दौरान एक रिटायर्ड आईएएस अफसर का दूसरी बार ‘पुनर्वास’ कर दिया गया। सरकार ने उन्हें पहले जो तोहफा दिया था, वह उन्हें रास नहीं आया लिहाजा अब उन्हें राज्य में टेलीमेडिसिन सेवा के विस्तार के लिये सलाहकार नियुक्त किया गया है। यह काम इतने गुपचुप तरीके से किया गया कि इसका शासनादेश पब्लिक डौमेन में अभी तक नहीं आ सका है। और तो और शासन के अधिकारी भी इस नियुक्ति पर कुछ भी कहने से बच रहे हैं।
आपको याद होगा अगस्त 2017 में उत्तराखण्ड के पॉवरफुल नौकरशाह उमाकांत पंवार (आईएएस) ने सेवानिवृत्ति की आयु पूरी होने से 9 साल पहले वीआरएस लेकर सबको चौंका दिया था। कहा गया कि उन्होंने स्वेच्छा से यह निर्णय लिया है। बाद में छनकर आई जानकारी से पता चला कि पंवार को वीआरएस दिलवाया गया था। उनके खिलाफ भ्रष्टाचार के मामलों में जांच चल रही थी। इतना ही नहीं सीवीसी (सेंट्रल विजिलेंस कमीशन) के रडार पर भी पंवार आ चुके थे। उनके वीआरएस लेने के बाद जांच की फाइलों का मूवमेंट रुका पड़ा है। चूंकि रिटायर्ड आईएएस अफसरों के पुनर्वास का ‘ठेका’ उत्तराखण्ड सरकार ने ले रखा है लिहाजा उस वक्त वीआरएस के तुरंत बाद ही उमाकांत पंवार को भी सेंटर फॉर पब्लिक पॉलिसी एण्ड गुड गवर्नेंस (सीपीपीजीजी) का मुख्य कार्यकारी अधिकारी बना दिया गया।
हालांकि रिटायरमेंट के बाद स्थितियां बदलीं तो पंवार की अन्य आईएएस अफसरों के साथ ट्यूनिंग नहीं बैठी जिससे सीपीपीजीजी की बैठकें लगातार तीन बार टलती चली गईं। और तो और पंवार को ऑफिस, वाहन आदि सुख-सुविधाओं से भी लम्बे समय तक ‘पैदल’ रखा गया। ऐसे में पंवार ने सचिवालय का रुख करना बंद कर दिया। लंबे अरसे बाद सुनने में आया कि सीपीपीजीजी से वह ‘क्विट’ कर चुके हैं। उसके बाद लगभग दो साल तक पंवार उत्तराखण्ड में परिदृश्य से गायब रहे। अब त्रिवेन्द्र सरकार ने लॉकडाउन में उन्हें फिर से महत्वपूर्ण जिम्मेदारी सौंपी है। अधिकृत जानकारी नहीं है पर कहा जा रहा है कि उन्हें टेलीमेडिसिन सेवा के विस्तार के लिये सलाहकार नियुक्त किया गया है। वह अवैतनिक रहते हुये इस जिम्मेदारी का निर्वहन करेंगे।
सवाल यह है कि बात-बात पर प्रेस रिलीज जारी करने वाली सरकार ने पंवार की पुनर्नियुक्ति की सूचना सार्वजनिक क्यों नहीं की। शासन के अफसर इस पर कुछ भी बोलने को तैयार क्यों नहीं हैं। अभी तक असमंजस इस बात पर है कि सीपीपीजीजी के सीईओ पद से पंवार इस्तीफा दे चुके हैं या फिर उसी पद को और परिष्कृत करते हुय उन्हें नए सिरे से सुख-सुविधाएं दी जा रही हैं। हाल ही में स्वास्थ्य महानिदेशालय भवन में उमाकांत पंवार का स्मार्ट ऑफिस तैयार किया गया है, जिसकी साज-सज्जा में ही लाखों रुपये खर्च किये गए हैं।
फिर ये सवाल भी तो उत्तरखण्ड के लोग पूछेंगे ना कि जो आईएएस स्वास्थ्य विभाग का अपर मुख्य सचिव रह सकता था, जिसका भविष्य में राज्य का मुख्य सचिव बनना तय था, उसने राजकीय सेवक के रूप में राज्य की सेवा करना मुनासिब नहीं समझा तो फिर अवैतनिक सलाकार के तौर पर वो यहां क्यों ‘सेवा’ करना चाहता है? स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट से भी पंवार के ‘तार’ जुड़े बताए जा रहे हैं। कुछ आईएएस भी उनकी इस नियुक्ति से खफा हैं। जनता भी सकते में है। मुख्यमंत्री जी ! वास्तविकता तो यह है कि स्वास्थ्य विभाग को ‘सलाहकार’ से ज्यादा ‘चिकित्सकों’ की दरकार है।