पहाड़ों की जैव विविधता खोलेगी युवाओं के लिए रोजगार के दरवाजे

श्रीनगर: उत्तराखंड अपनी जैव विविधता के लिए देश ही नहीं बल्कि दुनिया में भी जाना जाता है. बदलते वक्त के साथ अब प्रदेश की इस जैव विविधता का फायदा उठा रहे हैं. यहां की जैव विविधता बेरोजगार युवाओं के लिए रोजगार के दरवाजे खोल रही है. इसका ताजा उदाहरण डैंकण के पेड़ के रूप में सामने आया है. पहाड़ी इलाकों में डैंकण एक ऐसा पेड़ होता है जिसका कोई ज्यादा उपयोग नहीं होता है, मगर अब इसी पेड़ ने युवाओं के लिए रोजगार के रास्ते खोल दिये हैं. कैसे डैंकण के पेड़ से रोजगार पाया जा सकता है? इसी पर पढ़िए हमारी ये खास रिपोर्ट.

डैंकण का पेड़ कभी उत्तरखंड के हर गांव, हर घर में मिल जाया करता था. मगर बीतते वक्त और इसके उपयोग की जानकारी के अभाव के कारण धीरे-धीरे लोगों ने इसका बड़ी मात्रा में कटान किया. जिसके कारण अब पहाड़ी इलाकों में भी डैंकण के दर्शन दुर्लभ हो गये हैं. मगर अब इसी डैंकण को वैज्ञनिकों ने बहुउपयोगी माना है. वैज्ञानिकों का मानना है कि डैंकण के पेड़ से कई तरह के काम किये जा सकते हैं. जिससे यहां के युवाओं को रोजगार मिल सकता है.

डैंकण से तैयार किये जा सकते हैं कई प्रोडक्ट

गढ़वाल विवि. के वानिकी विभाग में असिटेन्ट प्रोफेसर डॉ. जितेंद्र बुटोला इसके उपयोग के बारे में बताते हैं कि डैंकण पर्वतीय इलाकों में रोजगार का बहुत अच्छा साधन हो सकता है. उन्होंने इसके फायदे गिनाते हुए बताया कि इससे धूप, अगरबत्ती, यज्ञ सामग्री, तेल, फ्लोर क्लीनर, होम केयर प्रोडक्ट बनाये जा सकते हैं. साथ ही डैंकण से पेस्टीसाइड, इंसेक्टिसाइड बनाये जा सकते हैं. उन्होंने बताया कि डैंकण की लकड़ी में कीड़ा नहीं लगता है. इस कारण इससे आर्टिकल, गिफ्ट और बॉक्स बनाये जा सकते हैं जो उपयोग में भी हल्के होते हैं.

युवा इससे शुरू कर सकते हैं रोजगार

डॉ. जितेंद्र बुटोला ने डैंकण के उपयोग के बारे में बताया कि इससे बोनसाइड पेड़ बनाकर बेचा जा सकता है. जिसकी बाजार में कीमत 3 से 5 रुपये तक होती है.जितेंद्र बुटोला कहते हैं कि डैंकण के पेड़ से कई तरह के प्रोडक्ट बनाये जा सकते हैं. जिससे यहां के युवा कम कीमत पर अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं. वे पहाड़ों में डैंकण की उपलब्धता को बेराजगार युवाओं से जोड़कर देख रहे हैं. उनका कहना है कि इससे आने वाले समय कई लोगों को रोजगार मिल सकता है.

डैंकण की 1 लाख पौध तैयार करेगा वानिकी विभाग

उन्होंने कहा पहले लोगों को इसकी उपयोगिता के बारे में जानकारी नहीं थी. जिसके कारण लोग इसे या तो काट देते थे, या फिर इसे लगाते ही नहीं थे. जिसके कारण अब डैंकण खत्म सा हो गया है. डैंकण की उपयोगिता को देखते हुए गढ़वाल विवि. के वैज्ञानिक इसके बीज से 1 लाख पौध तैयार करने की योजना बना रहे हैं. जिसके बाद इन्हें प्रदेश में वितरित किया जाएगा. जिससे डैंकण का पुनरुद्धार कर प्रदेश के बेरोजगार युवाओं को रोजगार उपलब्ध करवाया जा सके.

पहाड़ों में डैंकण के नाम से पहचाने जाने वाले इस पेड़ का वानस्पतिक नाम मिलिया एजाडराक है. अंग्रजी में इसे पर्सीयन लिलेक नाम से जाना जाता है. ये हिमालय की निचले इलाकों में 1800 मीटर की ऊंचाई पर पाया जाता है. इसके पेड़ की ऊंचाई 9 से 12 मीटर तक होती है.

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