उत्तराखंड में ग्लेशियर से निकलने वाली सैकड़ों नदियां वर्षापात पर आधारित हैं. लेकिन, बीते कुछ सालों में जिस तरह उत्तराखंड के मौसम में बदलाव आया है इससे इन नदियों के अस्तित्व पर संकट मंडरा रहा है. हालात ये हैं कि 354 नदियां अस्तित्व खोने की कगार पर पहुंच चुकी हैं. विशेष संकट यह है कि इन नदियों पर लाखों इंसानों के साथ कई प्रकार के जीव-जंतुओं के जीवन टिके हैं.
अल्मोड़ा की कोसी नदी का जलप्रवाह 1992 में 790 लीटर प्रति सेकेंड था. लेकिन, अब ये घटकर मात्र 48 लीटर पर जा पहुंचा है. उत्तराखंड के जाने-माने भू-गर्भ वैज्ञानिक डॉ. जेएस रावत का कहना है कि 354 नदियों का अस्तित्व खत्म होने की कगार पर है. इनमें कई नदियां ऐसी भी हैं जिनके कैचमेंट एरिया में इंसानी दखल बहुत ज्यादा बढ़ गए हैं.
5 सालों से उत्तराखंड में बहुत कम हो रही बारिश
कोसी से साथ ही गागस, गोमती, पनार, सरयू, लोहावती, रामगंगा और नायर जैसी अहम नदियों का भी जलप्रवाह बीते सालों में बहुत तेजी से गिरा है. त्रिवेन्द्र सिंह रावत सरकार में कोसी और रिसपना नदी को बचाने की मुहिम भी शुरू हुई थी, लेकिन नदियों को बचाने की ये मुहिम परवान चढ़ती नहीं दिखाई दी.
कई वर्षों से बदल रहा उत्तराखंड का मौसम चक्र
उत्तराखंड में बीते 5 सालों में बारिश लगातार कम हुई है; जिस कारण भू-गर्भीय जलस्तर में तो कमी आई ही है, नदियों का जलप्रवाह भी घटा है. जीबी पंत हिमालयी पर्यावरण संस्थान के सीनियर वैज्ञानिक डॉ. जेके बिष्ट का कहना है कि राज्य में साल दर साल बारिश कम हो रही है. यही नहीं मौसम का चक्र भी काफी बदल रहा है.
इंसानी दखल ने बढ़ाया संकट, एक्शन आवश्यक
गौरतलब है कि खत्म होने की कगार पर जा पहुंची 354 नदियां कई मायनों पर अहम हैं. इन नदियों के सहारे जहां पेयजल की जरूरतें पूरी होती हैं, वहीं सिंचाई के लिए ये जरूरी हैं. लेकिन, इंसानी दखल और बदलते मौसम की मार लगातार इन पर पड़ रही है. ऐसे में अगर समय रहते ठोस कदम नहीं उठाया गया तो, तय हैं कि आने वाले दिनों में ये संकट गहराता जाएगा.