कश्मीर में सरकारी कानून की आड़ में भ्रष्टाचार की भेंट चढ़े 25000 करोड़

आप और हम अक्सर सरकारी जमीन पर अवैध कब्जे की खबरें सुनते रहते हैं, लेकिन जमीन पर अवैध कब्जे को जिहाद का हथियार बना दिया जाए. वो भी बेहद संवेदनशील राज्य जम्मू-कश्मीर में सिस्टम और सफेदपोश नेताओं के संरक्षण में, तो हैरानी लाजिमी है. कश्मीर के सबसे बड़े घोटाले के पीछे की साजिश बता रहे हैं. ये घोटाला है 25 हजार करोड़ रुपये का और खास बात ये है कि इसमें करप्शन के साथ जिहाद का कनेक्शन भी है.

ये सब कुछ हुआ एक कानून की आड़ में, जिसका नाम है रोशनी एक्ट, जो जम्मू-कश्मीर में आबादी में बदलाव के लिए सबसे बड़ा हथियार बना दिया गया. इस घोटाले की जांच सीबीआई ने शुरू कर दी है, जिसका आदेश हाईकोर्ट ने रोशनी एक्ट को असंवैधानिक करार देते हुए दिया था. ताकि 25 हजार करोड़ रुपये वाले. कश्मीर में अब तक के इस सबसे बड़े घोटाले को अंजाम देने वाले हर बड़े से बड़े और छोटे से छोटे शख्स का पता लगाकर. उसे कानूनी अंजाम तक पहुंचाया जा सके.

सरकार की तरफ से गरीबों और कब्जा धारकों को जमीनों का मालिकाना हक देने के लिए शुरू की गई रोशनी योजना में 25 हजार करोड़ रुपये के घोटाले के आरोप किसी और ने नहीं, बल्कि तत्कालीन प्रिंसिपल एकाउंटेंट जनरल ने लगाए थे. 2013 में तत्कालीन प्रिंसिपल एकाउंटेंट जनरल जम्मू-कश्मीर एससी पांडे ने कहा था कि सरकार और राजस्व विभाग ने सभी नियम-कानूनों की धज्जियां उड़ाकर जमीन बांटी और जम्मू-कश्मीर के इतिहास में अब तक के सबसे बड़े घोटाले की इमारत तैयार कर दी. इतना ही नहीं कृषि भूमि को मुफ्त में ही ट्रांसफर कर दिया गया.

इसके लिए 2013 में पांडे ने एक पत्रकार सम्मेलन में सार्वजनिक रूप से कंप्ट्रोलर एंड आडिटर जनरल ऑफ इंडिया (CAG) की वर्ष 2012-13 की रिपोर्ट में रोशनी एक्ट से जुड़ी योजना के विभिन्न पहलुओं को उजागर किया था. यह कहा गया था कि अनुमान था कि राज्य की 20,64,792 कनाल भूमि पर हुए अवैध कब्जे का लोगों को मालिकाना हक देकर 25,448 करोड़ रुपये जुटाए जाएंगे, लेकिन कानून पर अमल नहीं किया गया. लोगों को 3,48,160 कनाल भूमि का हक देते हुए 317.54 करोड़ रुपये की जगह के लिए मात्र 76.24 करोड़ रुपये ही वसूले गए.

कैसे दिया गया अंजाम?

रोशनी एक्ट को नजरअंदाज करते हुए अलग से नियम तैयार कर 3,40,091 कनाल कृषि भूमि को निशुल्क ही ट्रांसफर कर दिया गया. प्रिंसिपल एकाउंटेंट जनरल ने कहा था कि उनके कार्यालय ने बार-बार राजस्व विभाग से रोशनी योजना के तहत लाभांवितों की सूची व जानकारी देने के लिए कहा, लेकिन महीनों लटकाकर रखा गया और जानकारी नहीं दी गई. आखिरकार सीएजी ने 31 जुलाई 2013 को रिपोर्ट तैयार कर ली. उनके पास सिर्फ 547 मामलों की जानकारी आई. इसमें 666 कनाल भूमि को ट्रांसफर करते हुए रियायतें दे दी गई, जिसमें सरकार को 225.26 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ. सरकार की तरफ से खुद ही फ्रैंडली नियम तैयार कर लिए गए. जमीन के मालिकाना अधिकार देने की प्रक्रिया पारदर्शी नहीं रही. पुलवामा में सड़क किनारे 129 कनाल भूमि 59 लोगों को ट्रांसफर कर दी गई और इसमें रोशनी एक्ट का पूरी तरह से उल्लंघन हुआ.

रोशनी एक्ट की आड़ में सरकारी जमीनों पर कब्जा करने वालों को मालिक बनाने को एडवोकेट अंकुर शर्मा ने जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट में चुनौती दी थी. 2016 में उन्होंने यह केस दायर किया और लंबी सुनवाई के बाद 13 नवंबर 2018 को हाईकोर्ट के डिवीजन बेंच ने रोशनी एक्ट के तहत हर तरह के लेनदेन पर रोक लगा दी. इससे कुछ दिन बाद 28 नवंबर 2018 को तत्कालीन राज्यपाल सत्यपाल मलिक की अध्यक्षता में प्रदेश प्रशासनिक परिषद ने भी रोशनी एक्ट के तहत हर तरह के लेनदेन पर रोक लगा दी. उसके बाद से रोशनी एक्ट के तहत हालांकि कोई लेनदेन नहीं हुआ है, लेकिन अब एडवोकेट अंकुर शर्मा रोशनी एक्ट के तहत दी गई जमीन को वापस लाने की लड़ाई लड़ रहे हैं.

ऐसे किया गया घोटाला

2001 में नेशनल कॉन्फ्रेस सरकार ने रोशनी एक्ट बनाया। इससे जमा होने वाले राजस्व को बिजली परियोजना पर लगाने का तर्क दिया गया था. एक्ट का प्रावधान था कि उन्हीं लोगों को जमीन का मालिकाना हक मिलेगा, जिनके पास 1999 से पहले से सरकारी जमीनों पर कब्जा है. वर्ष 2004 में इस एक्ट में बदलाव कर वर्ष 1999 से पहले कब्जे की शर्त हटा दी गई. इससे लोगों ने सरकारी जमीन पर कब्जे को दर्शाकर आवेदन किए. कई लोगों ने 200 रुपये में एक कनाल जमीन पर मालिकाना हक पा लिया. एक्ट के तहत मूल्य तय करने के लिए कई कमेटियां बनीं, लेकिन इसमें भी नियमों को ताक पर रखा गया. 2007 के बाद मालिकाना हक के लिए आवेदन नहीं हो सकता था, लेकिन राजनेताओं ने यह जारी रखा.

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