(वरिष्ठ पत्रकार गुणानंद जखमोला की कलम से)
– गंगा मैली ही रही, नौकरशाहों और भजन सिंह
ने अपने पाप पैसे से धो लिए!
– उत्पल कुमार की गलती छिपाकर नौकरशाह
एस. राजू ने भजन को पहुंचाया लाभ
देर आयद-दुरस्त आयद की तर्ज पर त्रिवेंद्र चचा ने कल कमाल कर दिया। कैबिनेट ने कल एक फैसला लिया, पेयजल संस्थान के प्रबंध निदेशक पद की चयन प्रक्रिया में वार्षिक प्रविष्टि के लिए समयसीमा आठ वर्ष की जगह पांच वर्ष की गई। और एमडी पद के लिए तीन साल या रिटायरमेट की शर्त रख दी। जी हां, त्रिवेंद्र सरकार ने तीन साल लगा दिये इस फैसले को लेने में। यह फैसला हमारे रोजमर्रा के जीवन से जुड़ा है यानी पानी, साफ पानी और करोड़ों हिन्दुओं की आस्था गंगा का। इस संस्थान में विगत सात साल से बहुत कुछ ऐसा हो रहा है जो जनहित में नहीं है। अब संस्थान के एमडी भजन सिंह की विदाई तय है। यही कारण है कि एसीएस ओमप्रकाश और उनके नेक्सस की सीरीज की बजाए मुझे इस विषय पर लिखना पड़ रहा है।
मैं आज बताने जा रहा हूं किस तरह से नौकरशाह टीपें पर कौमा, फुल स्टाप, एकबचन-बहुबचन का खेल कर घोटालों और अनियमिताओं को अंजाम देते हैं। हमारे अनपढ़ या लापरवाह नेता मूर्ख बन जाते हैं या नौकरशाह से गठजोड़ कर लेते हैं। घोटाला सामने आया तो नेता एक्सपोज हो जाता है लेकिन शातिर नौकरशाह बच जाते हैं। हालांकि ये भ्रष्ट नौकरशाह बहुत कम संख्या में हैं, लेकिन आपने सुना होगा कि एक ही पापी नाव डुबा देता है, इन्हीं भ्रष्ट नौकरशाहों ने हमारे प्रदेश की नैया डुबो दी है।
ऐसा हुआ एमडी पद के लिए खेल
2011 में पेयजल संस्थान के एमडी की नियमावली बनी। उस समय संस्थान के सचिव थे मौजूदा सीएस उत्पल कुमार सिंह। नियमावली में एक गलती हुई या जानबूझ कर किया गया कि एमडी पद के लिए जो मानक रखे गये उसमें कहा गया कि चीफ इंजीनियर के पद पर दस वर्ष की सेवा में आठ वर्ष की सीआर उपलब्ध होना आवश्यक होगा। (नियम पांच-5) यह शर्त जोड़ दी गई। दरअसल सामान्य संवर्ग के चीफ इंजीनियर बनने के बाद तो दस साल की नौकरी ही बचती नहीं है। जब चीफ इंजीनियर एमडी बनने की स्थिति में आता है तो उसके पास सेवा के दो-तीन साल ही बचते हैं। तो स्वाभाविक है कि कोई भी एमडी बन ही नहीं सकता था।
गलती नियमावली में यह थी कि एक्सईएन से लेकर चीफ इंजीनियर पदों की दस साल की अर्हता को मापदंड बनाना था। लेकिन नियमावली में बहुबचन पदों को एकबचन पद कर दिया गया और इसका लाभ 2013 में अप्रत्यक्ष तौर पर चीफ इंजीनियर भजन सिंह को दे दिया गया। क्योंकि चीफ इंजीनियर भजन सिंह को 2005 में पदोन्नति में आरक्षण में लाभ मिला था। जबकि उनसे सीनियर सुनील कुमार और वाई सिंह थे। विभाग में 2005 में मुख्य अभियंता बने भजन सिंह ही थे जिनकी 2013 में आठ साल की सीआर थी। यानी सीधा यह नियम केवल भजन को लाभ पहुंचाने के लिए बनाया गया। जबकि भजन से दो अन्य सीनियर इंजीनियर भी विभाग में थे। यानी नियमावली में एक शब्द पद से खेल हो गया। यानी बहुबचन पदों की जगह एकबचन पद लिख दिया गया और नियमावली पास हो गयी।
2013 में एस. राजू ने गलती छिपा दी और भजन से गठजोठ किया
2011 में बनी नियमावली को लेकर पेयजल संस्थान के इंजीनियरों में आक्रोश था। इस पर विभागीय सक्रियता भी बढ़ी, तो होना चाहिए था कि इसमें सुधार हो, लेकिन वो नहीं हुआ। 2013 में सत्ता बदली तो एस.राजू को सचिव की जिम्मेदारी मिल गयी। सचिव साहब ने गलती छिपा दी और भजन सिंह को पेयजल संस्थान का सिंहासन सौंप दिया। अगले तीन साल यानी एस. राजू के रिटायरमेंट तक पेयजल संस्थान में जो भी अनियमितताएं हुईं, जनता के सेवक आईएएस एस. राजू भूल गये। मैंने इस नियमावली को लेकर पेजयल अनुभाग दो में एक आरटीआई लगाई। आरटीआई के तहत मुझे 382 पेज की रिपोर्ट में कई चैंकाने वाली जानकारी मिली हैं।
सच यह है कि हमारे कुछ (सभी नहीं, अधिकांश अच्छे हैं) ब्यूरोक्रेट नेक्सस के तौर पर काम करते हैं। उन्हें रेड कारपेट मिलता है, बहुत अच्छा वेतन, जबरदस्त भत्ते, कोठी- लग्जरी कार समेत सभी सुख-सुविधाए मिलती हैं लेकिन उनका पेट कभी नहीं भरता। एक बात मैं आप लोगों को बता दूं कि जो भी एक बार आईएएस बन जाता है वो मरने तक सरकारी नौकरी पर ही रहता है। मसलन रिटायरमेंट के बाद भी उसे दोबारा सरकारी नौकरी मिल जाती है।
यही हाल एस राजू का भी है। रिटायरमेंट के बाद महाशय को 2016 में ही उत्तराखंड राज्य अधीनस्थ सेवा आयोग की जिम्मेदारी दी गई है और उनके ही महान कार्यकाल में पिछले साल आयोजित वन आरक्षियों की परीक्षा का पेपर लीक हो गया। महज 1218 फारेस्ट गार्ड की नौकरी पाने के लिए डेढ़ लाख से अधिक बेरोजगारों के सपनों पर पानी फिर गया। यदि आपको अब भी लगता है कि फारेस्ट गार्ड परीक्षा के पेपर लीक की जांच किसी नतीजे पर पहुंचेगी तो आप खुशफहमी में जी रहे हैं? या सपना देख रहे हैं और आपके जागने का समय हो गया है? एस. राजू ने कहा है कि उन्होंने 66 परीक्षाएं कराई हैं। मात्र छह परीक्षाओं में ही गड़बड़ी मिली है।
यानी पकड़े गये तो गड़बड़ी नही पकड़े तो दाग विहीन। उनके मुताबिक वन आरक्षी परीक्षा में भी मोबाइल और ब्ल्यू टूथ का प्रयोग हुआ है परीक्षा का पेपर लीक नहीं हुआ। आयोग को बदनाम किया जा रहा है। इसके बावजूद मेरा मानना है कि भजन सिंह और एस. राजू के समय यानी 2013 से मार्च 2016 तक यानी राजू के रिटायरमेंट तक पेजयल में हुए सभी टेंडर, कार्यों और अनियमिताओं की उच्चस्तरीय जांच होनी चाहिए।